S-2, Unit-5 सीखने को प्रभावित करने वाले कारक
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सीखने में न्यूरो दहिक आधार, अभिप्रेरणा और सीखने में अभिप्रेरणा की भूमिका, अवधान, सीखने में अवधान की भूमिका, स्मृति, सीखने सिखाने में स्मृति की भूमिका |
Q.1 बच्चों के सीखने में न्यूरो दैहिक आधार (Nuro Physiological) के प्रभाव की चर्चा करें। सीखने को समझने के लिए मस्तिष्क की संरचना एवं सीखने में इसकी भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर:- वर्तमान समय में न्यूरो दैहिक क्षेत्र में शोध होने के कारण सीखने की प्रक्रिया को नए तरीके से समझने में मदद मिली है। पिछले दशकों में हमारे मस्तिष्क तंत्रिका नेटवर्क में जानकारी संग्रहित करने वाली परिकल्पना ने बड़ी लोकप्रियता और मजबूत वैज्ञानिक समर्थन प्राप्त किया है। हमारे मस्तिष्क की तंत्रिका तंत्र की संरचना और इसके तत्व के बीच संबंध सूचना को संग्रहित करते हैं दूसरी तरफ स्मृति इन नेटवर्क के सक्रियन में शामिल है। मस्तिष्क प्राप्त सूचनाओं के आधार पर अपने आप को लगाता पुनर्संगठित करता रहता है। यह प्रक्रिया मृत्यु पर्यंत चलती है। परंतु मानव जीवन के प्रारंभिक वर्षों में अति तीव्र होती है। शिशु को अपने परिवार में प्राप्त अनुभव उसके स्नायु तंत्र को प्रभावित करते हैं जो यह निश्चित करता है कि वह विद्यालयों में तथा बाद के जीवन में मस्तिष्क कैसे और क्या सिखाता है।
मस्तिष्क की संरचना और सीखने में इसकी भूमिका:-
मस्तिष्क को तीन भागों में बांटा गया है
1. अनुमस्तिष्क ( Procencephalon)
2. मध्य मस्तिष्क (Mesencephlon)
3. पश्च मस्तिष्क (Rhombencephalon)
1. अनुमस्तिष्क
इसमें निम्नलिखित संरचनाएं होती है:-
(क)- सेरीब्रम:-मस्तिष्क का कार्य भाग सबसे विकसित होता है यह उच्च स्तरीय संज्ञानात्मक कार्यों में भाग लेता है जैसे स्मृति, अधिगम, भाषा, व्यवहार, तर्क लगाना, समस्या समाधान करना। हमारे मस्तिष्क के दो तिहाई का भाग प्रमस्तिष्क है होता है
(ख) थैलेमस:- शरीर का यह भाग हमारे दर्द ठंडा और गर्म के संवेग पर नियंत्रण रखता है ।
(ग) हाइपोथैलेमस:- यह हमारे मस्तिष्क के प्रमुख तंत्रिका तंत्र का भाग है। यह प्यार, खुशी, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, भूख, प्यास, ताप नियंत्रण, पसीना, जल का उपापचय, रक्तदाब नियंत्रण आदि संवेदनाओं पर नियंत्रण रखता है ।
2. मध्य मस्तिष्क
(क)- सेरीब्रम:-मस्तिष्क का कार्य भाग सबसे विकसित होता है यह उच्च स्तरीय संज्ञानात्मक कार्यों में भाग लेता है जैसे स्मृति, अधिगम, भाषा, व्यवहार, तर्क लगाना, समस्या समाधान करना। हमारे मस्तिष्क के दो तिहाई का भाग प्रमस्तिष्क है होता है
(ख) थैलेमस:- शरीर का यह भाग हमारे दर्द ठंडा और गर्म के संवेग पर नियंत्रण रखता है ।
(ग) हाइपोथैलेमस:- यह हमारे मस्तिष्क के प्रमुख तंत्रिका तंत्र का भाग है। यह प्यार, खुशी, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, भूख, प्यास, ताप नियंत्रण, पसीना, जल का उपापचय, रक्तदाब नियंत्रण आदि संवेदनाओं पर नियंत्रण रखता है ।
2. मध्य मस्तिष्क
इसके प्रमुख दो भाग इस प्रकार हैं:-
(क) कॉरपोरा क्वाड्रेजेमिना:- मस्तिष्क का यह भाग हमारे दृष्टि और श्रवण शक्ति पर नियंत्रण रखता है।
(ख) सेरेब्रल पेंडेकल:- यह मस्तिष्क को शरीर के मेरुरज्जु से जोड़ता है।
(क) कॉरपोरा क्वाड्रेजेमिना:- मस्तिष्क का यह भाग हमारे दृष्टि और श्रवण शक्ति पर नियंत्रण रखता है।
(ख) सेरेब्रल पेंडेकल:- यह मस्तिष्क को शरीर के मेरुरज्जु से जोड़ता है।
3. पश्च मस्तिष्क
पश्च मस्तिष्क के निम्नलिखित संरचना है
(क) सेरीबेलम:- यह हमारे मस्तिष्क का महत्वपूर्ण भाग है। यह शरीर का संतुलन बनाए रखता है एवं अधिक पेशियों के संकुचन पर नियंत्रण करता है। यह आंतरिक कान के संतुलन भाग से संवेदनाएं ग्रहण करता है।
(ख) मेडुला अबलॉन्गाटा:- यह मस्तिष्क के सबसे पीछे का भाग होता है। इसका प्रमुख कार्य रक्तदाब ग्रंथि स्राव ह्रदय की धड़कन और श्वसन का नियंत्रण करना है।
मस्तिष्क के विभिन्न भाग विभिन्न प्रकार के क्रियाकलापों को संपादित करते हैं। यह सीखनेेे सिखाने में बहुत ही अहम भूमिका निभाते हैं
(ख) मेडुला अबलॉन्गाटा:- यह मस्तिष्क के सबसे पीछे का भाग होता है। इसका प्रमुख कार्य रक्तदाब ग्रंथि स्राव ह्रदय की धड़कन और श्वसन का नियंत्रण करना है।
मस्तिष्क के विभिन्न भाग विभिन्न प्रकार के क्रियाकलापों को संपादित करते हैं। यह सीखनेेे सिखाने में बहुत ही अहम भूमिका निभाते हैं
संज्ञान, सीखना और बाल विकास, Cognition,Learning and Child development,
Q.2 सीखने के न्यूरो दैहिक संदर्भ में हुए शोध के शैक्षिक निहितार्थ की चर्चा करें ।
उत्तर:- तंत्रिका विज्ञान में शारीरिक मस्तिष्क के बारे में जानकारी मिलती है। यह इस बात को समझने में मदद करती है कि मस्तिष्क की संरचना और कार्य किस प्रकार से विशेष व्यवहारिक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया से संबंधित है। न्यूरो दैहिक विज्ञान में मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के सभी स्तरों पर शोध करना शामिल है। इसमें कोशिका, अनु, विभिन्न तंत्र, दिमागी गतिविधियां और बीमारियां शामिल है। मनोविज्ञान कंप्यूटर विज्ञान, दर्शनशास्त्र, भाषा विज्ञान, मानव विज्ञान एवं विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे शोधों ने न्यूरो दैहिक विज्ञान के अध्ययन को एक नई दिशा प्रदान की है। मस्तिष्क शरीर की सभी क्रियाओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करता है। मस्तिष्क का निर्माण तंत्रिका कोशिका से हुआ है। इसकी रचना तथा कार्य प्रणाली सीखने की प्रक्रिया को नियंत्रित तथा प्रभावित करती है।
तंत्रिका तंत्र विज्ञान के संदर्भ में हुए विभिन्न शोधों से यह सिद्ध किया है कि मस्तिष्क और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र व्यवहार और अनुभूति के प्रमुख अवयव हैं। सीखने, स्मृति और ध्यान में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। हर व्यवहार को तंत्रिका तंत्र से संबंधित मानते हुए जैविक मनोवैज्ञानिक महसूस करते हैं कि व्यवहार को समझने के लिए मस्तिष्क की कार्य प्रणाली का अध्ययन बहुत ही जरूरी है। तंत्रिका तंत्र किस प्रकार सूचनाओं का किस प्रकार उत्पन्न करता है कैसे उसका प्रसंस्करण करता है और कैसे उनको व्यवहार में लाता है, इसका अध्ययन बच्चों में भाषा, स्मृति, ध्यान, तर्कना, संवेग इत्यादि विकास को समझाने में मदद करता है।
उत्तर:- अभिप्रेरणा के निम्नलिखित दो प्रकार हैं-
1. प्राकृतिक अभिप्रेरणा(Natural Motivation)
Q.3 सीखने में अभिप्रेरणा के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन करें।
उत्तर:- अभिप्रेरणा के निम्नलिखित दो प्रकार हैं-
1. प्राकृतिक अभिप्रेरणा(Natural Motivation)
2. कृत्रिम अभिप्रेरणा(Artificial Motivation)
2. कृत्रिम अभिप्रेरणा(Artificial Motivation)
1. प्राकृतिक अभिप्रेरणा(Natural Motivation) -प्राकृतिक अभिप्रेरणा निम्नलिखित प्रकार की होती है-
(क) मनोदैहिक प्रेरणा: मनुष्य के शरीर और मस्तिष्क से संबंधित है। यह प्रेरणा मनुष्य के जीवित रहने के लिए आवश्यक होते हैं। इसमें प्रमुख है खाना-पीना चेतना आदत भाव संवेग इत्यादि।
(ख) समाजिक प्रेरणा : समाजिक प्राणी होने के कारण मनुष्य के व्यवहार को समाज निर्धारित करता है। इसमें सामाजिक प्रेरणा समाज के वातावरण में ही सीखी जाती है। जैसे स्नेह प्रेम सम्मान ज्ञान पद नेतृत्व इत्यादि। सामाजिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु यह प्रेरणा आवश्यक है।
(ग) व्यक्तिगत प्रेरणा: सभी व्यक्ति को अपने पूर्वजों से कुछ विशेषताएं प्राप्त होती है। जिसे अनुवांशिकता कहते हैं। साथ ही पर्यावरण की विशेषताएं छात्रों के विकास पर अपना प्रभाव छोड़ती है। पूर्वज की देन मानसिक और संज्ञानात्मक विकास में मदद करता है तो पर्यावरण बालकों की शारीरिक बनावट को सुडौल और सामान्य बनाने में सहायता करता है। व्यक्तिगत क्षमताओं के आधार पर ही व्यक्तिगत निर्णय भिन्न-भिन्न होती है। इसमें विशेष चीज में रूचि नीति व्यवहार इत्यादि शामिल है।
2. कृत्रिम अभिप्रेरणा(Artificial Motivation)- कृत्रिम प्रेरणा को निम्नलिखित रूपों में बांट सकते हैं:-
(क) दंड एवं पुरस्कार -दंड एवं पुरस्कार सीखने कि अभिप्रेरणा को प्रभावित करते हैं
(ख) सहयोग - सहयोग एक तीव्र अभी प्रेरक है जो अभिप्रेरणा को प्रभावित करता है
(ग) लक्ष्य- लक्ष्य रहने से अभिप्रेरणा में बल मिलता है
(घ) अभिप्रेरणा में परिपक्वता- विद्यार्थियों में प्रेरणा उत्पन्न करने के लिए आवश्यक है कि उनकी शारीरिक मानसिक सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखा जाए जिससे कि वे शिक्षा ग्रहण कर सकें
(ङ) व्यक्तित्व- व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं
(च) भाग लेने का अवसर- विद्यार्थियों में किसी कार्य में सम्मिलित होने की स्वभाविक प्रकृति होती है अतः उन्हें काम करने का अवसर देना चाहिए।
उत्तर:- आध्यात्मिक विकास तथा शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु मन को नियंत्रित करने को अवधान या ध्यान कहा जाता है। ध्यान या अवधान करने से मन की चंचलता में बाधा उत्पन्न नहीं होती है । डमविल के अनुसार- "किसी दूसरी वस्तु के बजाय एक ही वस्तु पर चेतना का केंद्रीकरण करने को अवधान कहते हैं"।
उत्तर:- स्मृति साधारण शब्दों में सीखना याद करना तथा पुनः स्मरण है। जब कोई बच्चा किसी बात को आसानी से सीख जाता है या याद याद रखता है और पुनः स्मरण कर लेता है तो यह कहा जाता है कि उस बच्चे की स्मरण शक्ति अच्छी हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अचेतन मन में संचित अनुभवों को चेतन मन में लाने की क्रिया को स्मृति कहते हैं।
वुडबर्थ के अनुसार- "स्मृति सीखी हुई वस्तु का सीधा उपयोग है"। जब कोई घटना व्यक्ति देखता है तो यह घटना उसके दिमाग में पूर्णत: या आंशिक रूप से उसके अचेतन मन में संचित हो जाता है। किसी कारण बस उस घटना को याद आने से उसके वह घटना पुण: उसके चेतन मन में आ जाती है।
सीखने सिखाने में स्मृति की भूमिका
स्मृति एक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत व्यक्ति सूचनाओं को संरक्षित रखता है। जब व्यक्ति किसी विषय वस्तु को समझता है सीख लेता है तो मस्तिष्क में यह सूचना भंडारित हो जाता है। सूचनाओं का पुनरुद्धार होता है तो मस्तिष्क के अचेतन मन से चेतन मन में आ जाती है अर्थात स्मरण हो जाता है। किसी भी प्रकार की कक्षागत सीखी गई बातों को सीख कर आत्मसात करना आवश्यक रहता है। सीखी गई बातों को मस्तिष्क में भंडारित किया जाता है। किसी विषय वस्तु को सीखते समय स्मृति का उपयोग होता है। छात्र सीखने सिखाने की प्रक्रिया में प्रतीक और शब्दों एवं उसके अर्थ तथा उसके बीच पारस्परिक संबंधों और सूत्रों को भंडारित करता है। और इसी स्थिति के आधार पर वह विभिन्न संबंधों को आत्मसात कर लेता है। व्यक्ति जो कुछ भी स्मरण करता है वह उसके स्मृति में भंडारित हो जाता है।
किसी विषय वस्तु को एक बार अच्छी तरह समझ लेने से या किसी घटना को बार-बार याद करते हैं तो यह हमारे अचेतन मन में भंडारित हो जाता है और वह घटना हम लोग कभी नहीं भूलते हैं। उदाहरण के लिए जब हम किसी खास विषय वस्तु को एक बार पढ़ते हैं और फिर उसको दो-तीन बार रिवीजन कर लेते हैं तो वह हमारे मस्तिष्क में भंडारित हो जाता है। इस प्रकार सीखने सिखाने की प्रक्रिया में स्मृति की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
(क) मनोदैहिक प्रेरणा: मनुष्य के शरीर और मस्तिष्क से संबंधित है। यह प्रेरणा मनुष्य के जीवित रहने के लिए आवश्यक होते हैं। इसमें प्रमुख है खाना-पीना चेतना आदत भाव संवेग इत्यादि।
(ख) समाजिक प्रेरणा : समाजिक प्राणी होने के कारण मनुष्य के व्यवहार को समाज निर्धारित करता है। इसमें सामाजिक प्रेरणा समाज के वातावरण में ही सीखी जाती है। जैसे स्नेह प्रेम सम्मान ज्ञान पद नेतृत्व इत्यादि। सामाजिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु यह प्रेरणा आवश्यक है।
(ग) व्यक्तिगत प्रेरणा: सभी व्यक्ति को अपने पूर्वजों से कुछ विशेषताएं प्राप्त होती है। जिसे अनुवांशिकता कहते हैं। साथ ही पर्यावरण की विशेषताएं छात्रों के विकास पर अपना प्रभाव छोड़ती है। पूर्वज की देन मानसिक और संज्ञानात्मक विकास में मदद करता है तो पर्यावरण बालकों की शारीरिक बनावट को सुडौल और सामान्य बनाने में सहायता करता है। व्यक्तिगत क्षमताओं के आधार पर ही व्यक्तिगत निर्णय भिन्न-भिन्न होती है। इसमें विशेष चीज में रूचि नीति व्यवहार इत्यादि शामिल है।
2. कृत्रिम अभिप्रेरणा(Artificial Motivation)- कृत्रिम प्रेरणा को निम्नलिखित रूपों में बांट सकते हैं:-
(क) दंड एवं पुरस्कार -दंड एवं पुरस्कार सीखने कि अभिप्रेरणा को प्रभावित करते हैं
(ख) सहयोग - सहयोग एक तीव्र अभी प्रेरक है जो अभिप्रेरणा को प्रभावित करता है
(ग) लक्ष्य- लक्ष्य रहने से अभिप्रेरणा में बल मिलता है
(घ) अभिप्रेरणा में परिपक्वता- विद्यार्थियों में प्रेरणा उत्पन्न करने के लिए आवश्यक है कि उनकी शारीरिक मानसिक सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखा जाए जिससे कि वे शिक्षा ग्रहण कर सकें
(ङ) व्यक्तित्व- व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं
(च) भाग लेने का अवसर- विद्यार्थियों में किसी कार्य में सम्मिलित होने की स्वभाविक प्रकृति होती है अतः उन्हें काम करने का अवसर देना चाहिए।
Q.4 अवधान (Attention) / ध्यान से आप क्या समझते हैं? सीखने में अवधान की क्या भूमिका है?
उत्तर:- आध्यात्मिक विकास तथा शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु मन को नियंत्रित करने को अवधान या ध्यान कहा जाता है। ध्यान या अवधान करने से मन की चंचलता में बाधा उत्पन्न नहीं होती है । डमविल के अनुसार- "किसी दूसरी वस्तु के बजाय एक ही वस्तु पर चेतना का केंद्रीकरण करने को अवधान कहते हैं"।
अवधान की प्रमुख अवधारणाए:-
- अवधान एक मानसिक प्रक्रिया है इस प्रक्रिया में चेतन मन किसी वस्तु व्यक्ति अथवा क्रिया की ओर लगता है इसमें चेतन मन को सक्रिय होना पड़ता है।
- अवधान में व्यक्ति का मन एवं शरीर दोनों क्रियाशील होता है
- अवधान में चेतन मन का सहयोग आवश्यक है
- व्यक्ति का चेतन मन जब तक किसी विषय पर केंद्रित नहीं होता तब तक उस विषय में उसका ध्यान केंद्रित नहीं हो सकता
- अवधान अस्थिर एवं गतिशील होता है
सीखने में अवधान की भूमिका (महत्व)
- अवधान में सजीवता होती है व्यक्ति जिस वस्तु पर ध्यान केंद्रित करता है वह वस्तु व्यक्ति की चेतना में स्पष्ट हो जाती है
- किसी भी वस्तु अथवा विचार आदि पर अवधान होने के लिए मानसिक सक्रियता आवश्यक है मानसिक सक्रियता द्वारा ही बच्चे सीख ही गई बातों को आत्मसात कर सकते हैं
- किसी वस्तु पर ध्यान केंद्रित करने के लिए शारीरिक और मानसिक तत्परता आवश्यक है जिससे बच्चे उस वस्तु या विषय से संबंधित अपने अवधारणा स्पष्ट कर पाते हैं
- अवधान में प्रायोजन रहती है अर्थात जब व्यक्ति किसी वस्तु या विचार पर ध्यान केंद्रित करता है तो वह अपने उद्देश्य को सीखने में सार्थक हो जाता है
Q.5 स्मृति (Memory) से आप क्या समझते हैं? सीखने सिखाने में इसकी क्या भूमिका है? स्पष्ट करें।
उत्तर:- स्मृति साधारण शब्दों में सीखना याद करना तथा पुनः स्मरण है। जब कोई बच्चा किसी बात को आसानी से सीख जाता है या याद याद रखता है और पुनः स्मरण कर लेता है तो यह कहा जाता है कि उस बच्चे की स्मरण शक्ति अच्छी हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अचेतन मन में संचित अनुभवों को चेतन मन में लाने की क्रिया को स्मृति कहते हैं।
वुडबर्थ के अनुसार- "स्मृति सीखी हुई वस्तु का सीधा उपयोग है"। जब कोई घटना व्यक्ति देखता है तो यह घटना उसके दिमाग में पूर्णत: या आंशिक रूप से उसके अचेतन मन में संचित हो जाता है। किसी कारण बस उस घटना को याद आने से उसके वह घटना पुण: उसके चेतन मन में आ जाती है।
सीखने सिखाने में स्मृति की भूमिका
स्मृति एक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत व्यक्ति सूचनाओं को संरक्षित रखता है। जब व्यक्ति किसी विषय वस्तु को समझता है सीख लेता है तो मस्तिष्क में यह सूचना भंडारित हो जाता है। सूचनाओं का पुनरुद्धार होता है तो मस्तिष्क के अचेतन मन से चेतन मन में आ जाती है अर्थात स्मरण हो जाता है। किसी भी प्रकार की कक्षागत सीखी गई बातों को सीख कर आत्मसात करना आवश्यक रहता है। सीखी गई बातों को मस्तिष्क में भंडारित किया जाता है। किसी विषय वस्तु को सीखते समय स्मृति का उपयोग होता है। छात्र सीखने सिखाने की प्रक्रिया में प्रतीक और शब्दों एवं उसके अर्थ तथा उसके बीच पारस्परिक संबंधों और सूत्रों को भंडारित करता है। और इसी स्थिति के आधार पर वह विभिन्न संबंधों को आत्मसात कर लेता है। व्यक्ति जो कुछ भी स्मरण करता है वह उसके स्मृति में भंडारित हो जाता है।
किसी विषय वस्तु को एक बार अच्छी तरह समझ लेने से या किसी घटना को बार-बार याद करते हैं तो यह हमारे अचेतन मन में भंडारित हो जाता है और वह घटना हम लोग कभी नहीं भूलते हैं। उदाहरण के लिए जब हम किसी खास विषय वस्तु को एक बार पढ़ते हैं और फिर उसको दो-तीन बार रिवीजन कर लेते हैं तो वह हमारे मस्तिष्क में भंडारित हो जाता है। इस प्रकार सीखने सिखाने की प्रक्रिया में स्मृति की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
S3 ka note nahi hai
जवाब देंहटाएंNote uplabadh nahi hoga kya
जवाब देंहटाएंKon sa notes. Mention please.
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