S-2 , Unit-1,बच्चों में संज्ञानात्मक और संप्रत्यय विकास, Part-2 संज्ञान सीखना और बाल विकास (कॉग्निशन लर्निंग एंड चाइल्ड डेवलपमेंट), Cognition learning and child development
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S-2;Unit-1,संप्रत्यय विकास की अवधारणा , ब्रूनर मॉडल के सैद्धांतिक आधार |
यहां दिए गए प्रश्न के माध्यम से आप अच्छी तरीके से डी एल एड द्वितीय वर्ष के असाइनमेंट और एग्जाम के प्रश्न का नोट्स तैयार कर सकते हैं।
Sangyan sikhana aur Bal Vikas, संप्रत्यय विकास की अवधारणा , ब्रूनर मॉडल के सैद्धांतिक आधार
Q.6 संप्रत्यय विकास की अवधारणा को स्पष्ट करें । संप्रत्यय विकास से संबंधित मानसिक प्रक्रिया कौन-कौन सी है?
उत्तर: अपने वर्तमान उत्तेजना और जानकारी को पूर्व अनुभव के बीच संबंध स्थापित करने को संप्रत्यय विकास कहा जाता है । उदाहरण के लिए जब कोई बच्चा पहली बार एक कौए को देखता है तो वह कौवे के रंग पंख पैर आंख इत्यादि देखता है। साथ ही वउड़ भी सकता है। साथ ही वह परिवार के लोगों को उसे कौवा कहते बार-बार सुनता है फिर बच्चा उस पक्षी की समान विशेषता वाले पक्षी को भी कौआ कहने लगता है। इस तरह बच्चा के मस्तिष्क में कौआ शब्द का संप्रत्यय बन जाता है और कौवे के प्रति उसके मस्तिष्क में एक प्रतिमान का निर्माण हो जाता है। जब वह द्वारा किसी अन्य पक्षी को देखता है तो वह पूर्व अनुभव के आधार पर बता देता है कि यह कौआ है। यदि वह महीना को देखता है तो पूर्व अनुभव के आधार पर इसमें संबंध नहीं जोड़ पाता है वह महीना को भी हुआ समझने लगता है। उसे बता दिया जाए कि यह मैना है तो फिर मैना का संप्रत्य अपने दिमाग में बना लेता है। इस प्रकार वह धीरे-धीरे मस्तिष्क में में कुर्सी टेबल पलंग अन्य भौतिक वस्तुएं साथ ही माता-पिता भाई-बहन सभी के बारे में संप्रत्यय बना लेता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वस्तुओं के सामान्य गुणों के आधार पर बनने वाले मानसिक प्रारूप को संप्रत्यय कहा जाता है।
बच्चों में संप्रत्यय विकास पहले मूर्त अवस्था से शुरू होता है। वह माता-पिता और भौतिक वस्तुओं का संप्रत्य बनाता है। उसमें तुलना पृथक्करण समानीकरण करता है। फिर धीरे-धीरे वह अमूर्त अवस्था की ओर बढ़ता है। जैसे जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है वह बहुत सारे जटिल संप्रत्यय को सीख लेता है और उन्हें आपस में भिन्न एवं स्पष्ट रखने के लिए एक श्रेणी में व्यवस्थित कर लेता है
संप्रत्यय विकास से संबंधित मानसिक प्रक्रिया
संप्रत्यय के निर्माण में बच्चों को विभिन्न मानसिक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है जो इस प्रकार है:-
(A) निरीक्षण:- बच्चे सभी भौतिक वस्तुओं को देखने के बाद उसका संप्रत्यय अपने मस्तिष्क में बनाते हैं। वह विभिन्न प्रकार की वस्तुओं तथा परिवार के सदस्यों का निरीक्षण करता है। उसका चेहरा देखता है स्वाद से परिचित होता है फिर धीरे-धीरे सभी वस्तुओं का संप्रत्यय अपने दिमाग में बनाने लगता है।
(B) तुलना:- बच्चे विभिन्न वस्तुओं को देखने के बाद निरीक्षण करने के बाद अवलोकन करता है और विभिन्न प्रकार की वस्तुओं में तुलना करने सीख जाता है। वह विभिन्न प्रकार के खिलौनों में तुलना कर सकता है। खाने पीने की वस्तुओं में तुलना कर सकता है। तुलना करने के कई कसोटिया हो सकते हैं। जैसे उसका आकार रंग बनावट उपयोगिता इत्यादि।
(C) पृथक्करण:- बच्चे समान तत्व वाली वस्तुओं को अलग करना सीख लेता है। यदि हम बच्चों को भिन्न-भिन्न रंगों के किताबें और कलम दें तो वह कलम को एक तरफ और किताब को एक तरफ कर देता है। क्योंकि उसमें पृथक्करण का गुण के विकास हो जाता है।
(D) सामान्यीकरण:- इस सिद्धांत के अनुसार पहले व्यक्ति एक परिकल्पना का निर्माण करता है फिर अपने अनुभव के आधार पर उसकी जांच करता है और आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन लाता है जिससे एक खास प्रत्यय का निर्माण होता है। जैसे जब कोई बच्चा देखता है कि एक खास तरह के पक्षी को लोग तोता कहते हैं तो वह इस प्रकार के पक्षी के समरूप अन्य पक्षियों को भी तोता समझ लेता है। अतः उसका संप्रत्यय समान रुप धारण कर लेता है इसी को सामान्यीकरण कहते हैं।
(E) परिभाषा निर्माण:- बच्चे उपर्युक्त चारों स्तरों के माध्यम से संप्रत्यय का निर्माण करते हैं। और उन सब के आधार हैं विभिन्न वस्तुओं के बारे में परिभाषाएं विकसित हो जाती है। हालांकि यह परिभाषा उसके मस्तिष्क के आधार पर होता है और प्रत्येक बालक में भिन्न-भिन्न हो सकता है।
संप्रत्यय विकास की अवधारणा, संज्ञानात्मक सिद्धांत, संप्रत्यय विकास को प्रभावित करने वाले कारक
Q.7 संप्रत्यय विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करें।
उत्तर:- संप्रत्यय विकास को कई कारक प्रभावित करते हैं जो इस प्रकार हैं:-
(क) बौद्धिक परिपक्वता:- मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बच्चों के बौद्धिक स्तर का प्रभाव उसके विकास पर पड़ता है। बौद्धिक परिपक्वता बढ़ने से बच्चों में समझने चिंतन करने की क्षमता का विकास होता है। जिससे संप्रत्यय विकास में मदद मिलती है।
(ख) ज्ञानेंद्रियों की अवस्था:- बच्चे अपने ज्ञानेंद्रियों के द्वारा संप्रत्य को सीखते हैं हैं। जब कोई बच्चा किसी खास वस्तु को देखता हैं तो उसके पति उसका संप्रत्यय मस्तिष्क में बन जाता है अतः संप्रत्य विकास में ज्ञानेंद्रियों की अवस्था का बहुत ही अहम रोल है
(ग) शिक्षण के अवसर:- बच्चों में संप्रत्य विकास का प्रभाव उसके शिक्षण का पड़ता है। जिस बच्चों का वातावरण विद्यालय सौहार्दपूर्ण और शिक्षाप्रद होता है बच्चे की समझ उतनी ही विकसित होती है। और बहुत जल्द ही संप्रत्य विकास होता है।
(घ) अनुभव:- बच्चे अपने अनुभवों से सीखता है। वह पूर्व ज्ञान के आधार पर नए ज्ञान को जोड़ने की कोशिश करता है। बच्चे प्रारंभ में मूर्त अनुभव प्राप्त करता है फिर धीरे-धीरे अमूर्त संप्रत्यय का विकास होता है। वह अनुभव के आधार पर विभिन्न प्रकार के वस्तुओं और अमूर्त वस्तुओं का संप्रत्य अपने मस्तिष्क में बनाता है।
(ङ) समाज और वातावरण:- समाज और वातावरण का बच्चों के मानसिक क्रियाओं पर बहुत ही ज्यादा प्रभाव पड़ता है। जैसे मोटर गाड़ी टेलीफोन बांग्ला झोपङी फ्रीज मटका आदि का संप्रत्य अलग-अलग समाज में रहने वाले बच्चों के लिए अलग-अलग होता है।
Q.8 बच्चों में संप्रत्यय विकास के ब्रूनर मॉडल के सैद्धांतिक आधारों का वर्णन करें।(V.V.I.)
उत्तर:- अमेरिका के J.S. ब्रूनर ने संज्ञानात्मक विकास का अध्ययन किया और उन्होंने अपने अध्ययन के माध्यम से कुछ संप्रत्यय विकास की अवधारणा दी। जिसे हम ब्रूनर मॉडल का सैद्धांतिक आधार कहा जाता है। ब्रूनर मॉडल को संरचनात्मक सिद्धांत भी कहते हैं साथ ही इसके सिद्धांत को पियाजे (स्वीटजरलैंड) के सिद्धांत का विकल्प भी कहा जाता है। इनके अनुसार बच्चों में अनुभूतियों की मदद से संप्रत्यय का विकास होता है। उन्होंने 1966 में अपने अध्ययन में कहा कि बच्चों में संप्रत्यय विकास तीन विधियां (सक्रियता दृश्य प्रतिमान तथा सांकेतिक) विधियों द्वारा होता है अर्थात क्रमिक विकास होता है। उन्हें मूलता: दो प्रकार के उत्तर ढूंढने में रुचि दिखाई। पहला यह कि बच्चे किस ढंग से अपने अनुभूतियों को मानसिक रूप से बताते हैं और दूसरा यह कि शैशवावस्था से बाल्यावस्था में बच्चे का मानसिक चिंतन कैसे होता है। दोनों प्रश्नों के माध्यम से ब्रूनर ने सिद्धांत देने की कोशिश की जो इस प्रकार से है:-
ब्रूनर के अनुसार शिशु अपनी अनुभूतियों को मानसिक रूप से 3 तरीकों से बताता है:-
(क) सक्रियता विधि ( Inactive Mode) :- इसे क्रिया निर्माण विधि भी कहते हैं। यह ऐसा तरीका है जिसमें बच्चे अपनी अनुभूतियों को क्रिया द्वारा व्यक्त करते हैं जैसे दूध की बोतल को देखने पर मुंह चलाना हाथ पैर फेंकना भूख लगने पर रोना इत्यादि। यह जन्म से लेकर 18 महीनों तक होता है
(ख) दृश्य प्रतिमान विधि ( Iconic stage) :- इसे प्रतिबिंबात्मक विधि भी कहते हैं। इसमें बच्चा अपने मन में कुछ खास प्रतिमाएं बनाकर अपने अनुभूतियों को व्यक्त करता है जैसे मां को देखकर पहचान लेना। 1.5 वर्ष या 2 वर्ष की उम्र में दृश्य प्रतिमा की प्रधानता होती है
(ग) संकेतिक विधि (Symbolic stage) :- इस विधि में बच्चा भाषा द्वारा अपने अनुभूतियों की अभिव्यक्ति करने सीख जाता है। 7 वर्ष की आयु से संकेतिक विधि की प्रधानता होती है
ब्रूनर ने भी प्याजे के समान संज्ञानात्मक विकास को एक क्रमिक प्रक्रिया माना। इसमें बच्चों के चिंतन में संकेत तथा प्रतिमा को महत्वपूर्ण माना है। संप्रत्य प्राप्ति एक संज्ञानात्मक रणनीति है जिसे ब्रूनर तथा उनके साथियों के द्वारा किए गए शोध पर प्रयोग से पता चलता है। शिक्षक बच्चों के पूर्व अनुभवों के प्रयोग करके किसी संप्रत्य की समझ विकसित करने की कोशिश करते हैं। इसमें पहले बच्चों को कुछ चित्र दिखाए जाते हैं फिर अन्य चित्रों को दिखा कर उसमें समानताएं और विषमता को बांटने के लिए कहा जाता है।
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