S-2,Unit-1, बच्चों में संज्ञानात्मक और संप्रत्यय विकास, Part-1 Piaget's Cognitive Development Theory पियाजे का संज्ञानात्मक विकास ,जीन पियाजे के विकास के सिद्धांत,
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Sangyan sikhana aur Bal Vikas, संज्ञन सीखना और बाल विकास,S-1 |
Q.1 संज्ञान ( Cognition) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :- संज्ञान को आसान शब्द में जानना कहते हैं। संज्ञान का अर्थ मन की आंतरिक प्रक्रिया और उत्पादों से है। अपने ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से जानकारी प्राप्त करने को संज्ञान कहते हैं
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Q.2 संज्ञानात्मक विकास (cognitive development) की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:- Cognitive शब्द का अर्थ संज्ञान होता है ।संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत में संज्ञान का काफी विस्तृत अध्ययन किया जाता है। हमारे ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से बाहरी ज्ञान को समझने की कोशिश करते हैं, इसी को संज्ञान कहते हैं । संज्ञान को साधारण शब्द में जानना कहते हैं। स्विट्जरलैंड के मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत को प्रतिपादित किया जिसका अर्थ सीखने से है।
सरल शब्दों में संज्ञानात्मक विकास का अर्थ है नवीन और तार्किक विचारों को समझना। संज्ञानात्मक विकास मानसिक और बौद्धिक प्रक्रिया का क्रमिक विकास है। इसमें सभी प्रकार की मानसिक गतिविधियां शामिल हो जाती है । जैसे ध्यान देना, याद करना, वर्गीकरण करना, योजना बनाना, विवेचना करना, समस्या का हल करना, नया सृजन करना, कल्पना करना इत्यादि वास्तव में यह एक मानसिक प्रक्रिया है जो जीवन पर्यंत चलती रहती है
Q.3 बच्चों में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है?
उत्तर :- बच्चों में संज्ञानात्मक विकास निम्न प्रकार से होता है:-
(क) प्रसव पूर्व अवस्था:- प्रसव पूर्व काल में ही बच्चे के संज्ञानात्मक विकास शुरू हो जाते हैं। बच्चे की अनुवांशिक रूप रेखा (ब्लूप्रिंट) ही बच्चे के संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करते हैं । मां की आयु , उसके द्वारा लिए गए आहार, उसकी मानसिक और सामाजिक स्थिति पर बच्चों का पूरा प्रभाव पड़ता है
(ख) शैशवावस्था:- जन्म के बाद बच्चे में संज्ञानात्मक विकास शुरू हो जाता है । नवजात शिशु में अधिकांश मस्तिष्क कोशिकाएं उपस्थित रहता है। इन कोशिकाओं के माध्यम से उसमें संज्ञानात्मक विकास आरंभ हो जाता है। हालांकि इस अवस्था में बच्चे का शारीरिक विकास ज्यादा होता है। इसके तहत वह सांस लेता है, चूसता है, निगलता है, और अन्य सारी क्रियाएं करता है। जन्म के प्रथम सप्ताह से 1 महीने के अंदर वह यह समझने में सक्षम हो जाता है कि ध्वनि किस दिशा से आ रही है। भूख लगने पर रोने लगता है किसी के बुलाने पर उसकी तरफ देखने लगता है । जीव बाहर निकालता है मुंह खोलता है इत्यादि प्रक्रिया शामिल है।
(ग) बाल्यावस्था :- बाल्यावस्था के दो चरण है पूर्व बाल्यावस्था और उत्तर बाल्यावस्था । पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे तीव्र गति से बढ़ते हैं । इसकी ऊंचाई और भार में वृद्धि होती है । खेलना कूदना दौड़ना इत्यादि क्रियाएं भी शामिल है इस समय बच्चे सामाजिक रूप से परिचित होने लगते हैं। बाल्यावस्था के उत्तर काल में यानी कि उत्तर बाल्यावस्था में बच्चे नैतिकता को समझने लगते हैं वह बहुत से कार्य स्वतंत्र रूप से करने लगते हैं लक्ष्य को निर्धारण कर सकते हैं इसके मस्तिष्क की परिपक्वता भी होने लगती है।
(घ) किशोरावस्था:- किशोरावस्था में बालक अमूर्त की ओर प्रस्थान करते हैं पहले बच्चा कोई भी वस्तु से संबंधित मूल संकल्पना को समझते हैं जैसे कि किसी मूर्ति को देखना उसके बाद उसमें अमूर्त संकल्पना का विकास होने लगता है जैसे की मूर्ति को देख कर उसके बारे में जानने की क्षमता का विकास होना अर्थात मस्तिष्क की प्रक्रिया के माध्यम से उसके गुणों को समझना चिंतन करना यह सभी अमूर्त चिंतन में आता है। किशोरावस्था में या प्रक्रिया बहुत ही तीव्र होती है इस समय उनके विचार भी आदर्शवादी होने लगते हैं।
Cognition,Learning and Child development
Piaget's Cognitive Development Theory पियाजे का संज्ञानात्मक विकास
Q.4 संज्ञानात्मक विकास से संबंधित जीन पियाजे के सिद्धांत का वर्णन करें .
उत्तर:- संज्ञानात्मक विकास का संस्थापक स्विट्जरलैंड के मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे को माना जाता है। इन्होंने संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इनके अनुसार सीखना उस समय ज्यादा महत्वपूर्ण होता है जब विद्यार्थी की रूचि और जिज्ञासा होती है ।
जिन पियाजे का मानना है कि संज्ञानात्मक विकास अनुकरण की बजाय खोज पर आधारित है। इसमें व्यक्ति अपने ज्ञानेंद्रियों के प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर अपने समझ का निर्माण करता है। उदाहरण के तौर पर जब कोई बच्चा किसी जलते हुए दीपक को जिज्ञासाबस छू लेता है तो उसे जलने के बाद एहसास होता है कि यह एक डरावनी चीज है और उस बाद बच्चा उससे दूर रहने लगता है हालांकि उसके पास इस घटना को बताने के लिए शब्द नहीं होते हैं लेकिन वह अपने आप में जान लेता है। इसी को संज्ञान कहा जाता है और इस तरह के विकास को संज्ञानात्मक विकास कहते हैं।
जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत:-
(A)संवेदी प्रेरक अवस्था:- यह अवस्था जन्म से लेकर 2 वर्ष तक चलती है इस अवस्था में बच्चे का शारीरिक विकास तेजी से होता है और इसके अंतर्गत बच्चों में भावनात्मक विकास भी होता है। इस दौरान बच्चे अपने संवेदी प्रेरक के माध्यम से क्रिया करते हैं। जैसे भूख लगने पर रोता है मां को देखकर पहचान लेता है खाने वाली वस्तुओं को देखकर जीवन बाहर करता है इत्यादि।
(B) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था :- यह अवस्था 2 वर्ष से लेकर 7 वर्ष तक चलती है। इस अवस्था में बच्चे नई नई सूचना व अनुभवों को सीखता है। इस उम्र में बच्चे का शारीरिक विकास तेजी से होता है। जिन पियाजे के अनुसार 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में संज्ञानात्मक परिपक्वता का अभाव पाया जाता है।
(C) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था :- 7 से 11 वर्ष तक चलती है। इस उम्र में बच्चे का मानसिक विकास तेजी से होता है। इस अवस्था में आत्मसात प्रक्रिया तेजी से होती है। इस उम्र में बच्चे अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर नए ज्ञान को प्राप्त करते हैं।
(D) औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था:- यह अवस्था 11 साल से 17 वर्ष तक चलती है। इस अवस्था में बच्चे अमूर्त की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। अर्थात किसी भी विषय वस्तु के मूर्त रूप को अमूर्त के रूप में देखने लगता है। उसमें संज्ञान का विकास होने लगता है। वह किसी भी बात को लेकर सही और गलत का फैसला लेने लगते हैं। इसमें संज्ञानात्मक परिपक्वता का विकास लगभग पूर्ण होता है। हालांकि संज्ञानात्मक विकास जीवन पर्यंत चलते रहता है।
Q.5 संज्ञानात्मक विकास और बुद्धि की अवधारणा के ऐतिहासिक संदर्भ तथा समकालीन संदर्भ को समझाएं ।
उत्तर:- संज्ञानात्मक विकास की अवधारणा के ऐतिहासिक संदर्भ:-
बच्चों में संज्ञानात्मक विकास की अवधारणा को समझने के लिए ऐतिहासिक रूप में शोध शुरू हो चुका था। जीन पियाजे ने बालक के संज्ञानात्मक विकास के संदर्भ में शिक्षा मनोविज्ञान की संकल्पना को उद्घाटित किया। इन्होंने अल्फ्रेड बिने के साथ 1922-23 में परीक्षण करना शुरू किया। जीन पियाजे के अनुसार मनुष्य आरंभिक बाल्यावस्था से ही क्रियात्मक तथा स्वतंत्र कार्य रचयिता होता है जो स्वयं ज्ञान का निर्माण करता है ना कि दूसरे से ग्रहण करता है। बच्चे सतत रूप से नए ज्ञान व कौशल संबंधी सूचनाओं को एकत्रित करता है और इसी प्राप्त सूचनाओं को समायोजित करता रहता है। जीन पियाजे के अनुसार बच्चे अपने वातावरण के साथ इसे अंत:प्रक्रिया के परिणाम स्वरुप ही सीखता है
इसके बाद वायगास्की ने 1924-34 में इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइकोलॉजि (मास्को) में अपने अध्ययन के दौरान संज्ञानात्मक विकास पर विशेष कार्य किया। इसके सिद्धांत के अनुसार समाजिक अंत:क्रिया ही बालक की सोच और व्यवहार में निरंतर बदलाव लाता है जो एक संस्कृति से दूसरे में भी हो सकता है। उनके अनुसार किसी बालक का संज्ञानात्मक विकास के अन्य व्यक्तियों से अंतर्संबंधों पर निर्भर करता है।
बुद्धि की अवधारणा के ऐतिहासिक संदर्भ
सभी व्यक्ति के बुद्धि में व्यक्तिगत अंतर होता है। सबसे पहले बुद्धि परीक्षण पर कार्य यूरोप और अमेरिका में शुरू हुआ। क्योंकि वहां पर सबके लिए शिक्षा याने की सार्वभौमिक शिक्षा की शुरुआत हो गई थी जहां पर प्रत्येक बच्चे को अनिवार्य रूप से निश्चित कक्षा तक स्कूल में शिक्षा देना था। 1905 ईसवी में फ्रांस के मनोवैज्ञानिक एडवर्ड बीने और उसके सहयोगी साइमन द्वारा पहला बुद्धि परीक्षण विकसित किया। इस परीक्षण के माध्यम से कुछ बच्चों से विभिन्न प्रकार के कुछ प्रश्नों को पूछा गया अलग-अलग उम्र के बच्चों को ध्यान में रखा गया। इन परीक्षण में उन्होंने पाया कि बहुत बच्चे कम उम्र के होने के बावजूद बड़े उम्र के बच्चों जैसे उत्तर दे पा रहे थे तब से मानसिक उम्र की जांच प्रक्रिया की शुरुआत हुई।
भारतीय परिवेश में ऐतिहासिक अवधारणा किस प्रकार बना दिए गए थे कि कुछ जातियों और वर्गों के पास अधिक बुद्धि होती है और कुछ जातियों के पास बहुत ही कम बुद्धि होती है। जिस कारण यहां समाज में ऊंच-नीच का भेद बन गया था।
टर्मन ने Adword Bine तथा साइमन के बुद्धि परीक्षण में संशोधन करके उसे बुद्धि लब्धि के संप्रत्यय का नाम दिया। बुद्धि लब्धि (Intelligence Quotient) को मानसिक आयु तथा वास्तविक आयु के अनुपात को 100 से गुणा करके प्राप्त किया जाता है।
Mental Age
I.Q.= --------------------------------×100
Chronological Age
बुद्धि लब्धि = (मानसिक आयु /वास्तविक आयु)×100
समकालीन संदर्भ में बुद्धि की सैद्धांतिक समझ
ऐतिहासिक संदर्भ में बुद्धि की जो संकल्पना आए थे उससे यह स्पष्ट हो गया कि बुद्धि को सिर्फ मान्यताओं के आधार पर हमको पर मापने पर जोर दिया गया था। ऐसा नहीं है कि यह मान्यताएं पूर्णता समाप्त हो गई बल्कि आज भी हम जाने-अनजाने उन्हें मान्यताओं का प्रयोग करते हैं। और आज के शिक्षकों में भी उन मान्यताओं की छाप मिलती है। आजकल भी कई जगह यह कहा जाता है कि हमारे विद्यालय में चार-पांच छात्र ही पढ़ने में तेज है बाकी कुछ बच्चों को पढ़ाने का कोई फायदा ही नहीं। प्याजे के संज्ञानात्मक सिद्धांत के बाद बुद्धि की इस अवधारणा में परिवर्तन आए। अपने सिद्धांत में प्याजे ने बुद्धि को मानसिक प्रक्रियाओं के विकास का ही एक स्वरूप माना है। यदि हम बुद्धि की अवधारणाओं को लेकर विशेष ध्यान की बात करें तो गिल और गार्डन ने 1983 में सात सिद्धांत दिए जिसे बहु बुद्धि सिद्धांत कहा गया। बाद में उन्होंने इसमें संशोधन करके 1998 में आठवां प्रकार और 2000 ईस्वी में नौवीं प्रकार जोड़ा।
संज्ञान, सीखना और बाल विकास संज्ञानात्मक विकास जीन पियाजे के सिद्धांत बुद्धि लब्धि.
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संज्ञान सीखना और बाल विकास
Cognition Learning and Child development
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