Unit-3, सीखने में व्यवहारवादी और सूचना का प्रसंस्करण के सिद्धांतों की समझ, व्यवहारवाद के दृष्टिकोण से सीखना, पावलव के अनुक्रिया अनुबंध के सिद्धांत, स्किनर के सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत, सूचना प्रसंस्करण मॉडल के अनुसार सीखने की प्रक्रिया।
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संज्ञान, सीखना और बाल विकास (कॉग्निशन लर्निंग एंड चाइल्ड डेवलपमेंट), Cognition learning and child development |
Q.1 व्यवहारवाद के दृष्टिकोण से से सीखने की अवधारणा को स्पष्ट करें। व्यवहार के व्यवहारवाद के दृष्टिकोण के आधारभूत मान्यताओ को लिखें।
उत्तर :- व्यवहारवाद शब्द की उत्पत्ति "व्यवहार" शब्द से हुई है जिसका अर्थ मानव के व्यवहारिक पहलू से होता है। मानव अपने व्यवहारों के माध्यम से जो संज्ञानात्मक विकास करता है वही अधिगम( सीखना) कहलाता है। मनोविज्ञान में व्यवहारवाद की शुरुआत 20 वीं सदी के पहले दशक में वाटसन द्वारा 1913 में जॉन हापकिंस विश्वविद्यालय में की गई उनका कहना था व्यवहारवाद माहौल से निर्देशित होता है।
उदाहरण के लिए यदि किसी घर में बुजुर्ग का आगमन होता है तो घर के बच्चे माता पिता के व्यवहारों का अनुकरण करके बुजुर्ग का पैर जरूर स्पर्श करते हैं। प्रारंभ में भले है यह अनुकरण तक सीमित हो अर्थात बड़ों को देखकर चरण स्पर्श करते हैं किंतु बाद में बच्चों को स्वत संज्ञान होने पर यह जान लेते हैं कि बड़ों का चरण स्पर्श करना चाहिए। यही ज्ञान अधिगम या सीखने का व्यवहार वाद है। व्यवहारवाद एक आवृत्ति या दृष्टिकोण है। यह मनोविज्ञान का ऐसा उपागम है जो निरीक्षण योग्य तथा मापन योग्य व्यवहार को बल देता है। इसके द्वारा मानव में सत्य आंकड़े प्राप्त किए जा सकते हैं। इसके प्रमुख घटकों में क्रियाएं करना चिंतन करना भावना आदि शामिल है। व्यवहार बाद तीन प्रकार माने गए हैं- विधि व्यवहारवाद, मनोवैज्ञानिक व्यवहारवाद और दर्शनशास्त्र व्यवहारवाद
आधारभूत मान्यताएं:-
- 1.यह व्यवहारवाद के वस्तुनिष्ठ अध्ययन में विश्वास रखते हैं
- 2.अधिगम के मुख्य विधि अनुबंधन होते हैं
- 3.इसका मुख्य बल वातावरण पर होता है तथा उपागम व्यवहार के निर्धारण में अनुवांशिकता की तुलना में वातावरण को अधिक महत्वपूर्ण मानता है
- 4. व्यवहारवादी विश्वास करते हैं कि ज्ञान की एक इकाई ज्ञान की नई इकाई से समानता, विरोधाभास, समानता के कारण साहचर्य स्थापित करती है
- 5.मानव में मानव एवं पशु दोनों के वस्तुनिष्ठ अवलोकन योग्य व्यवहार इसके अध्ययन के विषय वस्तु है
Q.2 पावलव के "अनुक्रिया अनुबंध सिद्धांत" के संदर्भ का विश्लेषण करें।
उत्तर:- रूस के इवान पत्रोविच पावलव फिजियोलॉजिस्ट थे। पावलव ने अनुप्रिया अनुबंध सिद्धांत 1904 में प्रस्तुत किया। पावलव का यह अनुक्रिया अनुबंध सिद्धांत अनुक्रिया एवं प्रबंधन पर आधारित है। अनुबंधन वह प्रक्रिया है जिसमें एक प्रभावहीन उद्दीपन (वस्तु या परिस्थिति) इतने प्रभावशाली हो जाती है कि वह छुपी हुई अनुप्रिया को प्रकट कर देती है। कुछ जन्मजात क्रियाएं जैसे श्वास लेना पाचन होना रक्त परिसंचरण तंत्र आदि स्वचालित क्रियाओं को कहा जाता है कुछ मनोवैज्ञानिक क्रियाएं जैसे पलक झपक, आना छींक आना, लार आना आदि अनुबंधन क्रियाएं कहलाती है।
पावलव के द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत के मूल विशेषता है कि और स्वभाविक उद्दीपन के प्रति स्वभाविक उद्दीपन के समान होने वाली अनुक्रिया शास्त्रीय अनुबंधन है। अर्थात उद्दीपन अनुक्रिया के बीच साहचर्य स्थापित होना ही अनुबंधन है। अपने सिद्धांत की पुष्टि के लिए प्रॉब्लम में एक कुत्ते पर प्रयोग किया। उसने कुत्ते की लार की ग्रंथि का ऑपरेशन किया और उस ग्रंथि का संबंध एक ट्यूब द्वारा एक कांच की बोतल से स्थापित किया। जिसमें लाल को एकत्रित किया जा सकता था। इस प्रयोग से पावलव ने इस प्रकार किया कि कुत्ते को खाना दिया जाता था तो खाना को देखते ही कुत्ते के मुंह में लार आना प्रारंभ हो जाती थी। इसके अलावा खाना देने के पूर्व घंटी बजाई जाती थी और घंटी के साथ ही खाना दिया जाता था। इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया गया और उसके बाद घंटी बजाई गई। जब घंटी बजाने के बाद भी कुत्ते को भोजन नहीं दिया गया फिर भी उसके मुंह से लार आना प्रारंभ हो गई। इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया गया इससे उसके अनुप्रिया अनुबंध सिद्धांत सफल हो गए।
यहां भोजन स्वभाविक उद्दीपक है जिससे Un-conditioned stimulus (UCS)कहा गया। और भोजन को देखते ही कुत्ते के मुंह में लार आना स्वभाविक अनुक्रिया है जिसे Un-conditioned response (UCS) कहा गया। जिसका अर्थ है कि अनुक्रिया किसी विशेष दिशा पर निर्भर नहीं करती बल्कि स्वाभाविक रूप से ही भोजन को देखकर आ जाती है। इसके पश्चात प्रयोग में भोजन ना देने पर घंटी की आवाज अस्वभाविक उद्दीपन तथा लार आना अस्वाभाविक अनुक्रिया है।
उत्तर:- बीएफ स्किनर अमेरिका के मनोवैज्ञानिक व्यवहारवादी लेखक आविष्कारक और सामाजिक दार्शनिक थे। उन्होंने सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत बताएं। उनके सिद्धांत के अनुसार यदि किसी क्रिया या व्यवहार के बाद संतोष या आनंद की अनुभूति होती है तो वह व्यक्ति या प्राणी उस व्यवहार को दोहराना चाहता है। इसके विपरीत यदि किसी अनुक्रिया के पश्चात असंतोष या दुख की प्राप्ति होती है तो उच्च व्यवहार या क्रिया को दोहराना नहीं चाहता है इस प्रकार ऐसे व्यवहार में उत्तेजना एवं अनुक्रिया का बंधन कमजोर हो जाता है।
स्किनर ने अधिगम के क्षेत्र में अनेक प्रयोग करते हुए यह निष्कर्ष निकाला की प्रेरणा से उत्पन्न क्रियाशील अनही सीखने के लिए उत्तरदाई है। उन्होंने दो प्रकार की अवधारणाओं पर प्रकाश डाला- प्रथम क्रिया प्रसूत और दूसरा उद्दीपन प्रसूत। क्रिया प्रसूत का संबंध किसी ज्ञात उद्दीपन से ना होकर उत्तेजना से होती है जबकि जो क्रिया उद्दीपन के द्वारा होती है वह उद्दीपन पर आधारित होती है। दोनों में खास अंतर है।
स्किनर ने अपना प्रयोग चूहों पर किया उन्होंने लीवर वॉक्स बनाया। लीवर पर चूहे का पैर पड़ते ही कट की आवाज होती थी। इस ध्वनि को सुनकर चूहा आगे बढ़ता और उसे प्याले में भोजन मिलता। यह भोजन चूहे के लिए प्रबलन का कार्य करता था। चूहा भूखा होने पर प्रणोदित होता और लीवर को दबाता। इन प्रयोगों में जब प्राणी स्वयं कोई वांछित व्यवहार करता है तो व्यवहार के परिणाम स्वरूप उसे पुरस्कार प्राप्त होता है। अन्य व्यवहारों के करने पर उसे सफलता प्राप्त नहीं होती। वह पुरस्कृत व्यवहार आसानी से सीख लेता है। इस प्रयोग से यह निष्कर्ष निकलता है कि अगर क्रिया करने के बाद कोई बल प्रदान करने वाला उद्दीपन मिलता है तो उस क्रिया की शक्ति में वृद्धि होती है। स्किनर के अनुसार प्रत्येक पुनर्बलन अनुक्रिया को करने के लिए प्रेरित करता है
पावलव के द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत के मूल विशेषता है कि और स्वभाविक उद्दीपन के प्रति स्वभाविक उद्दीपन के समान होने वाली अनुक्रिया शास्त्रीय अनुबंधन है। अर्थात उद्दीपन अनुक्रिया के बीच साहचर्य स्थापित होना ही अनुबंधन है। अपने सिद्धांत की पुष्टि के लिए प्रॉब्लम में एक कुत्ते पर प्रयोग किया। उसने कुत्ते की लार की ग्रंथि का ऑपरेशन किया और उस ग्रंथि का संबंध एक ट्यूब द्वारा एक कांच की बोतल से स्थापित किया। जिसमें लाल को एकत्रित किया जा सकता था। इस प्रयोग से पावलव ने इस प्रकार किया कि कुत्ते को खाना दिया जाता था तो खाना को देखते ही कुत्ते के मुंह में लार आना प्रारंभ हो जाती थी। इसके अलावा खाना देने के पूर्व घंटी बजाई जाती थी और घंटी के साथ ही खाना दिया जाता था। इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया गया और उसके बाद घंटी बजाई गई। जब घंटी बजाने के बाद भी कुत्ते को भोजन नहीं दिया गया फिर भी उसके मुंह से लार आना प्रारंभ हो गई। इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया गया इससे उसके अनुप्रिया अनुबंध सिद्धांत सफल हो गए।
यहां भोजन स्वभाविक उद्दीपक है जिससे Un-conditioned stimulus (UCS)कहा गया। और भोजन को देखते ही कुत्ते के मुंह में लार आना स्वभाविक अनुक्रिया है जिसे Un-conditioned response (UCS) कहा गया। जिसका अर्थ है कि अनुक्रिया किसी विशेष दिशा पर निर्भर नहीं करती बल्कि स्वाभाविक रूप से ही भोजन को देखकर आ जाती है। इसके पश्चात प्रयोग में भोजन ना देने पर घंटी की आवाज अस्वभाविक उद्दीपन तथा लार आना अस्वाभाविक अनुक्रिया है।
संज्ञान सीखना और बाल विकास, Assignment questions and answers for d.el.ed second year
vyavaharwad ke Drishtikon, pawlav ke anukriya anubandh Siddhant Suchna prasanskaran model Skinner ke sakriy anubandh Siddhant व्यवहारवाद के दृष्टिकोण पावलव के अनु अनुबंध सिद्धांत स्केनर के सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत सूचना प्रसंस्करण मॉडल
Q.3 "स्किनर के सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत" का विश्लेषण करें। इस सिद्धांत के शैक्षिक निहितार्थ का उल्लेख करें ।
उत्तर:- बीएफ स्किनर अमेरिका के मनोवैज्ञानिक व्यवहारवादी लेखक आविष्कारक और सामाजिक दार्शनिक थे। उन्होंने सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत बताएं। उनके सिद्धांत के अनुसार यदि किसी क्रिया या व्यवहार के बाद संतोष या आनंद की अनुभूति होती है तो वह व्यक्ति या प्राणी उस व्यवहार को दोहराना चाहता है। इसके विपरीत यदि किसी अनुक्रिया के पश्चात असंतोष या दुख की प्राप्ति होती है तो उच्च व्यवहार या क्रिया को दोहराना नहीं चाहता है इस प्रकार ऐसे व्यवहार में उत्तेजना एवं अनुक्रिया का बंधन कमजोर हो जाता है।
स्किनर ने अधिगम के क्षेत्र में अनेक प्रयोग करते हुए यह निष्कर्ष निकाला की प्रेरणा से उत्पन्न क्रियाशील अनही सीखने के लिए उत्तरदाई है। उन्होंने दो प्रकार की अवधारणाओं पर प्रकाश डाला- प्रथम क्रिया प्रसूत और दूसरा उद्दीपन प्रसूत। क्रिया प्रसूत का संबंध किसी ज्ञात उद्दीपन से ना होकर उत्तेजना से होती है जबकि जो क्रिया उद्दीपन के द्वारा होती है वह उद्दीपन पर आधारित होती है। दोनों में खास अंतर है।
स्किनर ने अपना प्रयोग चूहों पर किया उन्होंने लीवर वॉक्स बनाया। लीवर पर चूहे का पैर पड़ते ही कट की आवाज होती थी। इस ध्वनि को सुनकर चूहा आगे बढ़ता और उसे प्याले में भोजन मिलता। यह भोजन चूहे के लिए प्रबलन का कार्य करता था। चूहा भूखा होने पर प्रणोदित होता और लीवर को दबाता। इन प्रयोगों में जब प्राणी स्वयं कोई वांछित व्यवहार करता है तो व्यवहार के परिणाम स्वरूप उसे पुरस्कार प्राप्त होता है। अन्य व्यवहारों के करने पर उसे सफलता प्राप्त नहीं होती। वह पुरस्कृत व्यवहार आसानी से सीख लेता है। इस प्रयोग से यह निष्कर्ष निकलता है कि अगर क्रिया करने के बाद कोई बल प्रदान करने वाला उद्दीपन मिलता है तो उस क्रिया की शक्ति में वृद्धि होती है। स्किनर के अनुसार प्रत्येक पुनर्बलन अनुक्रिया को करने के लिए प्रेरित करता है
स्किनर के सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत के प्रमुख शैक्षिक निहितार्थ निम्नलिखित है:-
- शिक्षक इस सिद्धांत के द्वारा सीखे जाने वाले व्यवहार को स्वरूप प्रदान करता है
- उद्दीपन पर नियंत्रण कर के वांछित व्यवहार का सृजन किया जा सकता है
- इसके प्रयोग से बालकों के शब्द भंडार में वृद्धि किया जा सकता है
- इस सिद्धांत में सीखी जाने वाली क्रिया को छोटे-छोटे पदों में विभाजित किया जाता है
- इस विधि से सीखने की गति और सफलता दोनों मिलती है
- कार्य करने से सफलता मिलती है और संतोष की प्राप्ति होती है और यह संतोष बल प्रदान करता है
- इसमें पुनर्बलन को बल मिलता है
- इस सिद्धांत के अनुप्रयोग से छात्रों को अभिप्रेरित किया जा सकता है
Q.4 सीखने के सूचना प्रसंस्करण मॉडल (सिद्धांत) प्रक्रिया का वर्णन करें
उत्तर:- सूचना प्रसंस्करण मॉडल संप्रत्यय विकास पर आधारित हैं। यह मॉडल हमारे दिमाग के माध्यम से जानकारी को कैप्चर ऑपरेट और प्रोड्यूस करता है। अर्थात वातावरण से किसी प्राप्त जानकारी को पहले समझता है उस पर विचार करता है और फिर अपना विचार व्यक्त करता है। (INPUT-PROCESS-OUTPUT) प्रसंस्करण के विभिन्न स्तरों के माध्यम से उसके साथ काम करता है यहां तक कि विभिन्न स्मृति प्रक्रियाओं पर निर्भर करता है।
सूचना प्रसंस्करण मॉडल से उन तरीकों का पता लगाया जाता है जिससे कोई व्यक्ति सूचना से काम लेता है और इसका निरीक्षण करता है तथा सूचना के बारे में रननीतियों को बनाता है। यह वर्णन करता है कि बच्चों की चिंतन प्रक्रिया बचपन और किशोरावस्था में कैसे विकसित होती है। बच्चों से भिन्न किशोर अधिक जटिल ज्ञान अर्जित कर अपने आपको सूचना प्रसंस्करण के लिए समर्थ बनाकर बेहतरीन क्षमता विकसित कर लेते हैं। कंप्यूटर के समान माननीय संज्ञान भी मानसिक हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की तरह काम करता है। मानसिक हार्डवेयर विभिन्न स्मृतियों के संज्ञानात्मक संरचना का कार्य करता है जहां पर सूचना संरक्षित रहती है। जबकि मानसिक सॉफ्टवेयर संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का संगठित समूह है जो विशिष्ट कार्य को पूर्ण करने में व्यक्ति की सहायता करता है। जानकारी का प्रसंस्करण इंद्रियों के माध्यम से उत्तेजना की प्राप्ति के साथ शुरू होता है फिर इसे अपने स्मृति में संरक्षित करता है अंत में एक प्रतिक्रिया द्वारा निष्पादित किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि एक बच्चा परीक्षा में बहुत अच्छा करना चाहता है तो उसे पढ़ने के दौरान स्मृति में बहुत सूचना को संरक्षित करना ही होगा और फिर परीक्षा के दौरान आवश्यक सूचना को पुनः प्रतिक्रिया स्वरूप या आउटपुट स्वरूप बताना होगा या परीक्षा में लिखना होगा ।