S-1,Unit-2 समकालीन भारतीय समाज में शिक्षा (Contemporary India and Education)
Unit-2 शिक्षा के समकालीन मुद्दे
शिक्षा और आधुनिकीकरण, वैश्वीकरण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सर्वजनिक शिक्षा बनाम निजी शिक्षा
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Contemporary india and Education, समकालीन भारतीय समाज में शिक्षा, शिक्षा के समकालीन मुद्दे शिक्षा और आधुनिकीकरण वैश्वीकरण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सार्वजनिक शिक्षा बनाम निजी शिक्षा। |
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Q.1 शिक्षा में आधुनिकीकरण, वैश्वीकरण और सामाजिक परिवर्तन का प्रभाव कैसे पड़ता है?
यह भी पढ़ें-S2; unit-5, संज्ञान में सीखना और बाल विकास
उत्तर:- आधुनिकीकरण और शिक्षा
आधुनिकीकरण परिवर्तन की एक प्रक्रिया है जिसमें वर्तमान समय की जरूरतों के हिसाब से शिक्षा का विस्तार करना होता है। शिक्षा और आधुनिकीकरण के मध्य निकट का संबंध है। आधुनिकीकरण को 3 क्षेत्रों में विश्लेषण किया जा सकता है। प्रथम-शिक्षा के सांस्कृतिक तत्वों में, दूसरा- इसकी संगठनात्मक संरचना में, और तीसरा- वृद्धि की दर। एचसी दुबे के अनुसार शिक्षा आधुनिकीकरण का एक सशक्त माध्यम है क्योंकि शिक्षा ज्ञान की वृद्धि करती है एवं मूल्यों एवं धरनाओ में परिवर्तन लाती है जो आधुनिकीकरण के उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए आवश्यक है।
वैश्वीकरण और शिक्षा :-
वैश्वीकरण का अर्थ विश्व से है अर्थात शिक्षा का प्रचार प्रसार पूरे विश्व में होना ही वैश्वीकरण कहलाता है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने शिक्षा को सकारात्मक व नकारात्मक दोनों पक्षों में प्रभावित किया है वैश्वीकरण वर्तमान समय में व्यापारिक माहौल की एक ऐसी अवधारणा है जो पूरे विश्व को एक मंडल अथवा केंद्र बनाने की ओर अग्रसर है। वैश्वीकरण मूलतः आर्थिक प्रक्रिया है क्योंकि वर्तमान समय में बाजार की नीतियां सभी स्थानों पर लागू होती है चाहे वह शिक्षा ही क्यों ना हो।
शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन एक दूसरे से अंतर संबंधित है। शिक्षा से समाज में जागरूकता आती है जबकि शिक्षित समाज से शिक्षा में प्रचार प्रसार होता है। दूसरे शब्दों में हम कर सकते हैं कि शिक्षा समाज में बदलाव लाने का सबसे अच्छा माध्यम है। जब शिक्षा द्वारा सामूहिक विचार परिवर्तित होते हैं तब सामाजिक परिवर्तन होता है।
उत्तर:- आधुनिकीकरण और शिक्षा
आधुनिकीकरण परिवर्तन की एक प्रक्रिया है जिसमें वर्तमान समय की जरूरतों के हिसाब से शिक्षा का विस्तार करना होता है। शिक्षा और आधुनिकीकरण के मध्य निकट का संबंध है। आधुनिकीकरण को 3 क्षेत्रों में विश्लेषण किया जा सकता है। प्रथम-शिक्षा के सांस्कृतिक तत्वों में, दूसरा- इसकी संगठनात्मक संरचना में, और तीसरा- वृद्धि की दर। एचसी दुबे के अनुसार शिक्षा आधुनिकीकरण का एक सशक्त माध्यम है क्योंकि शिक्षा ज्ञान की वृद्धि करती है एवं मूल्यों एवं धरनाओ में परिवर्तन लाती है जो आधुनिकीकरण के उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए आवश्यक है।
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शिक्षा में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया सर्वप्रथम पश्चिमी देशों में शुरू हुई। अब भारत जैसे देश में भी शिक्षा में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया तीव्र होती जा रही है। जैसे-जैसे शिक्षा का प्रचार प्रसार बढ़ेगा उसके साथ-साथ आधुनिकीकरण की प्रक्रिया तीव्र होती जाएगी और विकास योजनाओं में जनता की भागीदारी भी बढ़ेगी। महिला साक्षरता के प्रतिशत के बढ़ने से भी
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया तीव्र हुई हैं। शिक्षा और संचार की तीव्र गति से विकास के परिणाम स्वरुप गांवों में भौतिक और सामाजिक परिवर्तन की के साथ-साथ नवीन मूल्य संबंध व आकांक्षाएं भी विकसित हो रहे हैंह शिक्षा आधुनिकीकरण का एक सशक्त माध्यम है जो आधुनिकीकरण के उद्देश्य तक पहुंचने के लिए आवश्यक है।
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वैश्वीकरण और शिक्षा :-
वैश्वीकरण का अर्थ विश्व से है अर्थात शिक्षा का प्रचार प्रसार पूरे विश्व में होना ही वैश्वीकरण कहलाता है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने शिक्षा को सकारात्मक व नकारात्मक दोनों पक्षों में प्रभावित किया है वैश्वीकरण वर्तमान समय में व्यापारिक माहौल की एक ऐसी अवधारणा है जो पूरे विश्व को एक मंडल अथवा केंद्र बनाने की ओर अग्रसर है। वैश्वीकरण मूलतः आर्थिक प्रक्रिया है क्योंकि वर्तमान समय में बाजार की नीतियां सभी स्थानों पर लागू होती है चाहे वह शिक्षा ही क्यों ना हो।
शिक्षा में वैश्वीकरण के फलस्वरूप कई सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। जैसे साक्षरता में वृद्धि शिक्षा में सूचना प्रौद्योगिकी व संचार तकनीकी के नवीनतम साधनों साधनों की उपलब्धता रोजगार अवसरों का सृजन शिक्षा से उत्पादकता में वृद्धि ज्ञान व तकनीकी का वैश्विक आदान-प्रदान संस्कृतिकरण वैश्विक शिक्षा की अवधारणा को मूर्त प्रदान करना इत्यादि। जबकि वैश्वीकरण के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं और यह नकारात्मक प्रभाव मुख्य रूप से शिक्षा को आर्थिक दृष्टिकोण से देखना है।
वर्तमान में शिक्षा एक बाजार की वस्तु बन गई है जिसे उत्पादकता से जोड़कर देखा जाने लगा है। शिक्षा आम व्यक्ति की तुलना में अमीर व्यक्ति के लिए सुविधाजनक हो गया है। वैश्वीकरण के परिणाम स्वरूप विद्यार्थियों में पश्चिमी व आधुनिकीकरण की प्रवृत्ति के अनुकूल मिला है, जिससे विद्यार्थियों में नैतिक व मानवीय मूल्यों का पतन तथा संस्कृति का ह्रास हुआ है।
सामाजिक परिवर्तन और शिक्षा
शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन एक दूसरे से अंतर संबंधित है। शिक्षा से समाज में जागरूकता आती है जबकि शिक्षित समाज से शिक्षा में प्रचार प्रसार होता है। दूसरे शब्दों में हम कर सकते हैं कि शिक्षा समाज में बदलाव लाने का सबसे अच्छा माध्यम है। जब शिक्षा द्वारा सामूहिक विचार परिवर्तित होते हैं तब सामाजिक परिवर्तन होता है।
विज्ञान तथा तकनीकी का विकास शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन का एक उदाहरण है। लोग शिक्षा के प्रति अधिक जागरूक हो गए हैं तथा शिक्षा ने बदले में समाज के लोगों में वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास किया है। सभी क्षेत्रों में नई तकनीक संसाधनों का प्रयोग होता जा रहा है और शिक्षा में भी हमें यह देखने को मिलती है। और यह सभी सुविधाएं तथा तकनीक सामाजिक परिवर्तन में एक विशेष भूमिका निभाता है।
हालांकि शिक्षा से भी लोगों के उच्च स्तर तथा स्थिति को सुनिश्चित नहीं करती फिर भी बिना शिक्षा के सामाजिक गतिशीलता प्राप्त करना असंभव है। इसके अतिरिक्त शिक्षा अवसरों की समानता में तीन प्रकार से भूमिका निभाती है जो इस प्रकार है:-
(क) जो लोग शिक्षित होने के इच्छुक हैं उन्हें सुविधाओं के लाभ लेने के योग्य बनाने के कार्य को संभव बनाता है
(ग) शिक्षा के विषय वस्तु को विकसित करता है जो दृष्टिकोण के विकास को प्रोन्नत करता है
(ग) धर्म भाषा जाति वर्ग पर आधारित सामाजिक वातावरण का निर्माण करता है।
उत्तर:- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
गुणवत्तापूर्ण पूर्ण ऐसी शिक्षा है जो किसी व्यक्तिक भिन्नता के बिना प्रत्येक बच्चे को दी जाए। प्रत्येक बच्चे के सीखने का तरीका क्षमता मानसिकता अलग अलग होता है। सभी बच्चों को सिखाने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का होना बहुत ही आवश्यक है। शिक्षा इस प्रकार की सभी बच्चों को सीखने का पर्याप्त अवसर प्रदान हो अर्थात वह शिक्षा से वंचित न रह जाए।
सार्वजनिक या सरकारी विद्यालय के शिक्षा के लाभ :-
शिक्षा को निजी लोगों और संस्थानों के हवाले करना और उनको अपने तरीके से काम करने की आजादी देने को शिक्षा का निजीकरण अथवा प्राइवेट शिक्षा कहते हैं। पिछले कुछ दशकों में शिक्षा के तरीकों में बदलाव आया है। पहले शिक्षण संस्थान सरकार द्वारा चलाए जाते थे परंतु अब सभी जगह निजी करण की होड़ लगी हुई है। निजीकरण के कारण सभी प्राइवेट संस्था वाले अपने तरीके से शिक्षा को चलाते हैं। हालांकि इसमें कुछ लाभ और कुछ दुष्प्रभाव भी है जो इस प्रकार से है:-
निजी शिक्षा के लाभ :-
उत्तर:- शिक्षा के निजीकरण पर उदारवादी दृष्टिकोण-
शिक्षा के निजीकरण के कारण शिक्षा के स्तर में काफी सुधार हुआ है निजी संस्थानों में योग्य शिक्षक अत्याधुनिक तकनीक अनुशासन मूलभूत सुविधाएं होती है इससे शिक्षण पर विशेष बल मिला है छात्रों और शिक्षकों की नियुक्ति जांच प्रक्रिया के तहत ही की जाती है। भारत एक कृषि प्रधान देश और विकासशील देश है।
शिक्षा में निजीकरण के कारण भ्रष्टाचार मनमानी गलत पाठ्यक्रम को बढ़ावा मिला है। शिक्षा में निजीकरण के चलते सभी निजी विद्यालय अपने तरीके से पाठ्यक्रम का निर्माण करके शिक्षा देते हैं। इसका सीधा असर बच्चे की मानसिकता पर पड़ती है। जहां पर प्राथमिक स्तर पर बच्चों को व्यवहारिकता के आधार पर शिक्षा देना चाहिए
Q.2 गुणवत्तापूर्ण शिक्षा क्या है? शिक्षा में गुणवत्ता पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?
उत्तर:- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
गुणवत्तापूर्ण पूर्ण ऐसी शिक्षा है जो किसी व्यक्तिक भिन्नता के बिना प्रत्येक बच्चे को दी जाए। प्रत्येक बच्चे के सीखने का तरीका क्षमता मानसिकता अलग अलग होता है। सभी बच्चों को सिखाने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का होना बहुत ही आवश्यक है। शिक्षा इस प्रकार की सभी बच्चों को सीखने का पर्याप्त अवसर प्रदान हो अर्थात वह शिक्षा से वंचित न रह जाए।
साथ ही प्रत्येक बच्चे को विभिन्न प्रकार के गतिविधियों खेल प्रोजेक्ट इत्यादि के माध्यम से सीखने का मौका दिया जाना चाहिए। ऐसी शिक्षा में चीजों को समझने के ऊपर विशेष फोकस होता है। बच्चों को चर्चाओं के माध्यम से अपनी बात कहने और ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में भागीदारी का मौका मिलता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा वह शिक्षा है जिससे छात्रों के गुणों का विकास होता है। साथ ही सभी छात्रों को समान रूप से सीखने का अवसर प्राप्त होता है।
प्राथमिक या उच्च किसी भी शिक्षा में गुणवत्ता के लिए मुख्य रूप से दो बातें सर्वाधिक उपयोगी है। पहला- श्रेष्ठ और पर्याप्त शिक्षक, दूसरा- बेहतर पाठ्यक्रम। शिक्षकों की कमी की बात की जाए तो आए दिन यह सवाल उठते रहता है। हालांकि ncf-2005 और बीएफ 2005 में प्रति 30 बच्चे पर एक शिक्षक रहने का प्रावधान है। लेकिन अभी तक यह बात अमल में नहीं ला लाया जा सका है। साथ ही योग्य और कुशल शिक्षकों का अभाव भी पाया जाता है।
अगर बात किया जाए शिक्षकों की बहाली में तो आए दिन बिहार में विभिन्न प्रक्रिया से शिक्षकों की बहाली की जाती है। जिसमें शिक्षकों के श्रेष्ठता पर सवाल उठाया जाता है। आज कई प्रकार की शिक्षक की कैटेगरी बना दी गई है, जैसे- पारा शिक्षक, सहायक शिक्षक, वेतनमान शिक्षक इत्यादि। इस प्रकार के शिक्षकों में विरोध उत्पन्न होता है। इसके अलावा सभी शिक्षकों के वेतनमान में बराबरी ना होना भी शिक्षा के गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
संविधान के अनुच्छेद 38 में वर्णित समान कार्य के लिए समान वेतन का उल्लंघन भी करता है। दूसरी ओर पाठ्यक्रम की बात करें तो यह पाठ्यक्रम में ढांचागत सुविधाओं की कमी हैं। प्रत्येक जगह शहर की अपनी कुछ सीमाएं होती है लेकिन पाठ्यक्रम को अपने अनुसार व्यवस्थित किया जाता है। जब पढ़ाई की बारी होती है तो शिक्षकों को अपने हिसाब से बच्चों को पढ़ाना होता है वहां पर पाठ्यक्रम के तरीका काम नहीं आती है।
सरकारी स्कूल में शिक्षकों की समस्या है तो निजी विद्यालय अनुचित पाठ्यक्रम चला रहे हैं इस प्रकार आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता जा रहा है। यह हालत तब है जब पूरे देश में शिक्षा का अधिकार कानून लगा हुआ है। कस्तूरी रंगन की अध्यक्षता में अभी वर्तमान में नई शिक्षा नीति 2020 आई है। इसमें शिक्षा को सुधारने पर विशेष बल दिया गया है। अब यह देखना है कि यह नीति कितना कारगर होती है।
उत्तर:- सार्वजनिक शिक्षा
सार्वजनिक शिक्षा एक आधुनिक विचार है इसमें बिना किसी भेदभाव के सभी लिंग जाति वर्ग को सीखने का समान अवसर प्राप्त होता है। वर्तमान समय में सार्वजनिक शिक्षा में समावेशी करण को लागू किया गया है। हां पर गरीब अमीर पहुंच ने किसी भी धर्म के बच्चों को साथ में सामान्य और विकलांग छात्रों को भी एक साथ शिक्षा दी जाती है।
Q.3 सार्वजनिक शिक्षा बनाम निजी शिक्षा के मुद्दे पर अपना तर्क दें।
अथवासार्वजनिक शिक्षा एवं निजी शिक्षा के लाभ व दुष्प्रभावों का उल्लेख करें।
उत्तर:- सार्वजनिक शिक्षा
सार्वजनिक शिक्षा एक आधुनिक विचार है इसमें बिना किसी भेदभाव के सभी लिंग जाति वर्ग को सीखने का समान अवसर प्राप्त होता है। वर्तमान समय में सार्वजनिक शिक्षा में समावेशी करण को लागू किया गया है। हां पर गरीब अमीर पहुंच ने किसी भी धर्म के बच्चों को साथ में सामान्य और विकलांग छात्रों को भी एक साथ शिक्षा दी जाती है।
सार्वजनिक या सरकारी विद्यालय के शिक्षा के लाभ :-
- विद्यालय में मूलभूत सुविधा- सभी छात्रों को विद्यालय में किताब खाना मुफ्त में मुहैया कराया जाता है ताकि सभी गरीब बच्चे पढ़ाई कर सकें
- मध्यान भोजन- सभी सरकारी विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन की सुविधा उपलब्ध कराई गई है ताकि कोई भी छात्र भूखे रहकर पढ़ाई ना करें
- प्रोत्साहन- सरकारी विद्यालयों में सभी विद्यार्थियों को प्रोत्साहन के तौर पर छात्रवृत्ति भी दी जाती है
- शिक्षकों की कमी- सरकारी विद्यालयों में 8 शिक्षकों की कमी एक आम समस्या बन गई है सभी विद्यालयों में 50% शिक्षकों का पद खाली पड़ा है कई विद्यालयों में प्रिंसिपल भी नहीं होते हैं।
- मूलभूत सुविधा की कमी- सरकारी विद्यालयों में स्वस्थ और सक्रिय शौचालय की कमी है सरकार कई तरह के फंड भी उपलब्ध कराते हैं लेकिन उसका सही से उपयोग नहीं हो पाता है
निजी शिक्षा
शिक्षा को निजी लोगों और संस्थानों के हवाले करना और उनको अपने तरीके से काम करने की आजादी देने को शिक्षा का निजीकरण अथवा प्राइवेट शिक्षा कहते हैं। पिछले कुछ दशकों में शिक्षा के तरीकों में बदलाव आया है। पहले शिक्षण संस्थान सरकार द्वारा चलाए जाते थे परंतु अब सभी जगह निजी करण की होड़ लगी हुई है। निजीकरण के कारण सभी प्राइवेट संस्था वाले अपने तरीके से शिक्षा को चलाते हैं। हालांकि इसमें कुछ लाभ और कुछ दुष्प्रभाव भी है जो इस प्रकार से है:-
निजी शिक्षा के लाभ :-
- सुविधाएं और नई तकनीक- प्राइवेट विद्यालयों में सरकारी विद्यालय से ज्यादा सुविधाए उपलब्ध होती विभिन्न प्रकार के नए तकनीक जैसे कंप्यूटर इंटरनेट के माध्यम से व्यवहारिक रूप से परिचय कराया जाता है इसके साथ ही विद्यालयों में शौचालय पुस्तकालय जैसी मूल सुविधाएं उपलब्ध होती है
- प्रवेश के समय जांच की प्रक्रिया- प्राइवेट विद्यालयों में प्रवेश के समय बच्चों को परीक्षा से गुजरना पड़ता है इससे छात्रों की तैयारी मजबूत होती है। अर्थात वह तैयारी करने को प्रेरित होते हैं साथ ही प्राइवेट विद्यालयों में सीमित संख्या में ही बच्चों को दाखिला दिया जाता है।
- पर्याप्त और श्रेष्ठ शिक्षक- निजी विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षक होते हैं। साथ ही प्रत्येक शिक्षक अपने अपने विषय में निपुण भी होते हैं। शिक्षकों की बहाली भी बेहतर तरीके से की जाती है।
निजी शिक्षण संस्थानों के दुष्प्रभाव
- मनमानी फीस वसूलन- निजी संस्थानों में मनमानी फीस वसूला जाता है शिक्षा में निजीकरण के कारण गरीब लोग अच्छे स्कूलों में शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं।
- भ्रष्टाचार- शिक्षा में निजीकरण के कारण भ्रष्टाचार पर बल मिला है आजकल प्राइवेट विद्यालयों में नामांकन के नाम पर डोनेशन एक बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है मदद के तौर पर आज यह एक धंधा सा बन गया है।
- शिक्षा का व्यापार बनाना- आज निजी विद्यालयों में शिक्षा को बिजनेस के तौर पर देखा जाता है। शिक्षा शिक्षा नहीं अब व्यवसाय बन कर रह गया है।
Q.4 शिक्षा के निजीकरण पर अपने उदारवादी दृष्टिकोण तथा आलोचनात्मक विमर्श प्रस्तुत करें।
उत्तर:- शिक्षा के निजीकरण पर उदारवादी दृष्टिकोण-
शिक्षा के निजीकरण के कारण शिक्षा के स्तर में काफी सुधार हुआ है निजी संस्थानों में योग्य शिक्षक अत्याधुनिक तकनीक अनुशासन मूलभूत सुविधाएं होती है इससे शिक्षण पर विशेष बल मिला है छात्रों और शिक्षकों की नियुक्ति जांच प्रक्रिया के तहत ही की जाती है। भारत एक कृषि प्रधान देश और विकासशील देश है।
सरकार चाहकर भी शिक्षा के ऊपर बड़ा बजट तैयार नहीं कर सकती है। पहले शिक्षा में 3 से 4% का बजट बनाया जाता था लेकिन नई शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा के बजट में बढ़ोतरी करके 6% तक किया गया है। इससे शिक्षा के स्तर में सुधार होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसके अलावा शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण बन जाता है।
लाभ :-
लाभ :-
- सुविधाएं और नई तकनीक- प्राइवेट विद्यालयों में सरकारी विद्यालय से ज्यादा सुविधाए उपलब्ध होती विभिन्न प्रकार के नए तकनीक जैसे कंप्यूटर इंटरनेट के माध्यम से व्यवहारिक रूप से परिचय कराया जाता है इसके साथ ही विद्यालयों में शौचालय पुस्तकालय जैसी मूल सुविधाएं उपलब्ध होती है
- प्रवेश के समय जांच की प्रक्रिया- प्राइवेट विद्यालयों में प्रवेश के समय बच्चों को परीक्षा से गुजरना पड़ता है इससे छात्रों की तैयारी मजबूत होती है। अर्थात वह तैयारी करने को प्रेरित होते हैं साथ ही प्राइवेट विद्यालयों में सीमित संख्या में ही बच्चों को दाखिला दिया जाता है।
- पर्याप्त और श्रेष्ठ शिक्षक- निजी विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षक होते हैं। साथ ही प्रत्येक शिक्षक अपने अपने विषय में निपुण भी होते हैं। शिक्षकों की बहाली भी बेहतर तरीके से की जाती है।
शिक्षा के निजीकरण के आलोचनात्मक विमर्श
शिक्षा में निजीकरण के कारण भ्रष्टाचार मनमानी गलत पाठ्यक्रम को बढ़ावा मिला है। शिक्षा में निजीकरण के चलते सभी निजी विद्यालय अपने तरीके से पाठ्यक्रम का निर्माण करके शिक्षा देते हैं। इसका सीधा असर बच्चे की मानसिकता पर पड़ती है। जहां पर प्राथमिक स्तर पर बच्चों को व्यवहारिकता के आधार पर शिक्षा देना चाहिए
शिक्षा में समावेशी प्रक्रिया लागू करने चाहिए वहीं पर निजी विद्यालयों में अपने को श्रेष्ठ समझने के लिए शिक्षा का बहुत सारा बोझ छोटे छोटे बालकों पर डाल दिया जाता है। इससे उनकी मानसिकता भी कमजोर होते हैं। सरकारी नीतियां सहायता प्राप्त संस्थानों में अनुदान से प्राप्त धन को अक्सर दूसरे नाम पर खर्च करके स्थिति को बदतर बना दिया जाता है । शिक्षकों को पर्याप्तता नहीं रहने पर भी सरकार से पूर्ण रकम की मांग की जाती है।
S-1; Unit-1 विविधता, असमानता और वंचना, सत्ता, वर्चस्व और प्रतिरोध, सामाजिक न्याय की अवधारणा, शिक्षा के संवैधानिक प्रावधान
इन प्रश्न के माध्यम से आप अपनी तैयारी को बेहतर बना सकते हैं असाइनमेंट बनाते समय इन प्रश्नों से आप बेहतर प्रश्न तैयार करें।
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