S-1, Unit-4 शिक्षा और सामाजिक अपेक्षाएं
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W-1; Unit-4, शिक्षा और सामाजिक अपेक्षाएं |
समकालीन भारतीय समाज में शिक्षा
(Contemporary India and Education)
Q.1 शिक्षा,विद्यालय तथा समुदाय में कौन-कौन से समकालीन बदलाव हुए हैं तथा इनका क्या प्रभाव पड़ा है? वर्णन करें।
उत्तर:- शिक्षा में आए समकालीन बदलाव:-
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत में शिक्षा एक चर्चित विषय रहा है। संविधान में कई ऐसे प्रावधान किए गए जो शिक्षा की उन्नति के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावे जब भी आवश्यकता हुई प्रमुख प्रावधान कानून बनाए गए। दिसंबर 1947 में मध्य प्रदेश के रीवा नगर में अखिल भारतीय शिक्षा सम्मेलन में शिक्षा पर विचार किया गया और उसके बाद से ही आयोग समितियां आदि का गठन किया जाने लगा। कुछ प्रमुख आयोग और समितियां इस प्रकार है:-
विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन 1948- इस आयोग के द्वारा यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) की स्थापना की गई।इसकी अध्यक्षता डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने की स्वतंत्र भारत की यह पहली शिक्षा आयोग थी
माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन 23 सितंबर- 1952 इसका गठन तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा के सभी पक्षों की जांच कर उसका रिपोर्ट देना ताकि शिक्षा में सुधार किया जा सके
शिक्षा आयोग का गठन 14 जुलाई 1964- 1964-66 में दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में कोठारी आयोग का गठन किया गया जो राष्ट्रीय शिक्षा का स्वरूप प्रदान करता है
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968- इसमें 17 कार्यक्रमों को शामिल किया गया यह कोठारी आयोग के सिफारिशों के अनुरूप ही है
नई शिक्षा नीति 1986- यह नीति एक समान शैक्षिक ढांचे को स्वीकार करता है। और अधिकांश राज्यों में 10+2+3 की संरचना को अपने राज्यों में लागू किया
संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986- 27 मई 1990 को भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति को संशोधित करने के लिए कमेटी गठित की और इनके अध्यक्ष रामा मूर्ति को बनाया गया। इस नीति में शिक्षा के उद्देश्य सामान्य स्कूल व्यवस्था शिक्षा का सशक्तिकरण परीक्षा सुधार स्त्रियों की शिक्षा विद्यालय प्रशासन इत्यादि शामिल किया गया
सर्व शिक्षा अभियान- सर्व शिक्षा अभियान के तहत निशुल्क तथा अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा का प्रावधान किया गया ताकि सभी छात्रों को और खासकर विशेष जरूरत वाले बच्चों को शिक्षा प्रदान की जाए
नई शिक्षा नीति 2020- हाल ही में भारतीय संविधान के 17वीं लोकसभा के मंत्री परिषद के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिक्षा में सुधार की गुंजाइश के लिए नई शिक्षा नीति 2020 को लागू कर दिया। यह नीति पूर्व आरबीआई गवर्नर कस्तूरी रंगन की अध्यक्षता में गठित की गई इसमें शिक्षा की संरचना को 5+3+3+4 के रूप में लागू किए जाने की मांग की गई है।
विद्यालय में हुए समकालीन बदलाव
शिक्षा में बदलाव लाने के लिए विभिन्न प्रकार के संवैधानिक प्रावधान भारतीय संविधान में मौजूद है साथ ही समय-समय पर अधिनियम बनाए गए जिसके तहत विद्यालयों के ढांचे में भी बदलाव आए हैं। सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के अंतर्गत विभिन्न हस्तियों के माध्यम से विद्यालय बुनियादी ढांचे के प्रावधान के तहत की गई।
आज हम विद्यालयों को मात्र इमारतों और कक्षाओं के रूप में ही नहीं देखते हैं। एक स्कूल में मूल शिक्षण स्थितियों के साथ-साथ इसमें बिजली की व्यवस्था, कार्यात्मक प्रयोगशाला और पाठन स्थल, विज्ञान प्रयोगशालाए, कंप्यूटर प्रयोगशाला, शौचालय की व्यवस्था, मध्यान भोजन के पकाने के लिए एलपीजी कनेक्शन इत्यादि अवश्य होने चाहिए। इसके लिए लगातार प्रयास कर रही है और राज्य के ज्यादातर विद्यालयों में इसकी व्यवस्था कर दी जा चुकी है। और लघु समय के अंतर्गत सभी विद्यालयों में इसकी व्यवस्था हो जाने की उम्मीद है।
उत्तर:- प्राचीन समय से ही शिक्षा पर बल दिया जा रहा है। पुराने समय में ऋषि मुनि अपने पाठशाला में छात्रों को शिक्षा देते थे जिसे गुरुकुल कहा जाता था । धीरे-धीरे विद्यालय मदरसा इत्यादि की शुरुआत हुई। विद्यालय मदरसा यह सभी सामाजिक इकाई की तरह कार्य करते हैं जहां शिक्षक तथा विद्यार्थी शिक्षण अधिगम वातावरण में कार्य करते हैं और सीखते हैं ।
Unit-4 शिक्षा और सामाजिक अपेक्षाएं
Q.2 शिक्षा संस्थान सामाजिक परिवर्तन व पुनर्निर्माण के अभिकरण के रूप में कैसे है ?
अथवासमाजिक परिवर्तन व पुनर्निर्माण के अभिकरण के रूप में शिक्षा संस्थान विद्यालय की भूमिका का उल्लेख करें ।
उत्तर:- प्राचीन समय से ही शिक्षा पर बल दिया जा रहा है। पुराने समय में ऋषि मुनि अपने पाठशाला में छात्रों को शिक्षा देते थे जिसे गुरुकुल कहा जाता था । धीरे-धीरे विद्यालय मदरसा इत्यादि की शुरुआत हुई। विद्यालय मदरसा यह सभी सामाजिक इकाई की तरह कार्य करते हैं जहां शिक्षक तथा विद्यार्थी शिक्षण अधिगम वातावरण में कार्य करते हैं और सीखते हैं ।
इस शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का मुख्य लक्ष्य समाज के सदस्यों में ऐसी भावना विकसित करता है जो राष्ट्र की प्रगति में सहायक हो। विद्यालयों में औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ औपचारिक शिक्षा पर बल दिया जाता है ताकि समाज की मान्यताओं तथा मुरलिया रीति-रिवाजों और परंपराओं का निर्माण उत्थान संरक्षण हो सके। यह शिक्षण संस्थाएं औपचारिक शिक्षा व्यवस्था के अत्यंत महत्वपूर्ण अभिकरण होते हैं तथा संस्कृति के हस्तांतरण के अत्यंत महत्वपूर्ण माध्यम होते हैं।
इसके अलावा बच्चों का सर्वांगीण विकास करने में इसकी प्रमुख भूमिका होती है बच्चों में नेतृत्व की क्षमता का विकास करना उसके व्यक्तित्व का निर्माण करना समाज का पुनर्निर्माण करना सहयोग और सुरक्षा की भावना विकसित करना, राष्ट्रीयता की भावना विकसित करना, अनुशासन की भावना को विकसित करना इत्यादि। विद्यालय समाज के पुनर्निर्माण व परिवर्तन में अग्रणी भूमिका निभाते हैं।
यहां विभिन्न पाठ्यचर्या तथा पाठ्य विधियों का आयोजन होता है, जिससे छात्रों का स्वास्थ्य और व्यक्तित्व निखरता है। यहां लोकतांत्रिक वातावरण में सभी सदस्यों को विभिन्न कार्य करने का समान अवसर उपलब्ध कराया जाता है तथा सभी को सीखने तथा निष्पादन करने के लिए समान अवसर उपलब्ध मिलते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शिक्षा संस्थाएं सामाजिक परिवर्तन और पुनर्निर्माण के महत्वपूर्ण अभिकरण हैं।
Q.3 आर्थिक सुधारों का शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा है ? वर्णन करें
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अथवा आर्थिक सुधारों के शिक्षा पर प्रभाव की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
उत्तर:- आर्थिक सुधारों का अर्थ ऐसे सुधारों से है जो अर्थव्यवस्था को विकसित करता है। मुख्य आर्थिक सुधार उदारीकरण निजीकरण तथा वैश्वीकरण से संबंधित होता है। 1991 के आर्थिक सुधार के बाद भारत में 7 फ़ीसदी की औसत वृद्धि दर से विकास हो रहा है। हालांकि 2020 में कोरोना महामारी के कारण यह ग्रोथ एकदम सा रुक गया है, लेकिन फिर भी अगले साल इसमें बढ़ोतरी होने का अनुमान है। इसके परिणाम स्वरूप यह मध्य आय वर्ग का देश बन गया है। क्रय शक्ति में बढ़ोतरी के साथ ही लोगों में लोगों की आकांक्षाएं भी बड़ी है।
अभिभावक बच्चों के लिए बेहतर व्यवस्था चाहते हैं। यहां तक कि गरीब अभिभावक भी जिनके लिए अपने जीवन को बदलने की एकमात्र आशा बच्चों की अच्छी शिक्षा देखकर पूरी हो सकती है। पढ़ाई के लिए गैर सरकारी स्कूलों को चुनने लगे हैं। गैर सरकारी स्कूल का सीधा मतलब है कि वह सरकारी स्कूलों पर विश्वास नहीं रखते हैं।
भारत में सरकारी स्कूलों में नामांकन दर पिछले दशकों में घट गई है इसका मुख्य कारण सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की कमी है । साथ ही योग्य और पर्याप्त शिक्षकों की कमी है। 2010 और 2014 के बीच 13 हजार से ज्यादा सरकारी स्कूल खुलने के बावजूद 1.13 करोड नामांकन में कमी आई है जबकि निजी विद्यालयों में 1.85 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है। करीब 3.6 लाख सरकारी स्कूलों में छात्रों की अधिकतम संख्या मात्र 50 ही है।
वर्ष 2016 के लिए 18 जनवरी को जारी की गई
एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट में पढ़ाई की गुणवत्ता की दयनीय स्थिति को उजागर किया गया है रिपोर्ट में यह बताया गया कि तीसरी कक्षा के सिर्फ 25 फ़ीसदी छात्र ही दूसरी कक्षा के स्तर की किताबें पढ़ सकने में सक्षम है निश्चित ही ऐसे स्कूलों में निवेश करने का कोई विशेष फायदा नहीं मिल पा रहा है। इसीलिए सिर्फ बजट में आवंटन बड़ा देने से कोई खास फर्क नजर नहीं आने वाला है। हालांकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा पर खर्च 4.8% से बढ़ाकर 6% कर दिया गया है लेकिन सिर्फ बढ़ाने से कुछ नहीं होने वाला।
भारत में भ्रष्टाचारी एक आम समस्या है। जब तक भ्रष्टाचार खत्म नहीं होंगे शिक्षक योग्य और पर्याप्त नहीं होंगे। इसके साथ ही अच्छे शिक्षकों की नियुक्ति का अर्थ है कि उन्हें पर्याप्त वेतन दिया जाए शिक्षकों में जो भिन्नता है उसे खत्म किया जाए। समान कार्य के लिए समान वेतन जैसी व्यवस्था लागू किया जाना बहुत ही जरूरी है।
स्वतंत्रता के बाद से विकसित देशों के समान भारत में भी शिक्षा को व्यवसायिक रूप दिया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है तथा व्यय भी बढ़ता जा रहा है परंतु यह पाया गया कि शैक्षिक प्रगति तथा शिक्षा पर व्यय के अनुपात में प्रगति नहीं हुआ। हमारे देश में कुछ राज्यों जैसे केरल में शिक्षितों का प्रतिशत ज्यादा है किंतु आर्थिक विकास कम। जबकि हरियाणा व पंजाब में शिक्षा का विकास अपेक्षाकृत कम व आर्थिक विकास अधिक हुआ है।
उत्तर:- किसी कार्य को नई तकनीक से करने को नवाचार कहते हैं और यह विकास के लिए बहुत ही जरूरी है बात करें शिक्षा की तो नवाचार और विकास में शिक्षा की अहम भूमिका है शिक्षण पद्धति में सुधार के लिए नवाचार बहुत ही जरूरी है कहा भी जाता है शिक्षा परिवर्तन का दूसरा नाम है और नवाचार शिक्षा को सहारा प्रदान करता है। विद्यालयों में नए-नए रोचक और नई पद्धतियों से शिक्षा में एक चमत्कारी परिवर्तन आता है। अगर हम पुराने तरीके ही अपनाएंगे तो छात्र उस में रुचि नहीं लेंगे। लेकिन नए नए तौर-तरीके और तकनीकी विधि अपनाने से छात्र उसको स्वीकारते हैं और सीखने में रुचि रखते हैं।
Q.4 समाज में नवाचार और विकास के लिए शिक्षा की भूमिका का वर्णन करें ।
अथवासमाज में नवाचार और विकास के लिए शिक्षा कैसी होनी चाहिए? वर्णन करें।
उत्तर:- किसी कार्य को नई तकनीक से करने को नवाचार कहते हैं और यह विकास के लिए बहुत ही जरूरी है बात करें शिक्षा की तो नवाचार और विकास में शिक्षा की अहम भूमिका है शिक्षण पद्धति में सुधार के लिए नवाचार बहुत ही जरूरी है कहा भी जाता है शिक्षा परिवर्तन का दूसरा नाम है और नवाचार शिक्षा को सहारा प्रदान करता है। विद्यालयों में नए-नए रोचक और नई पद्धतियों से शिक्षा में एक चमत्कारी परिवर्तन आता है। अगर हम पुराने तरीके ही अपनाएंगे तो छात्र उस में रुचि नहीं लेंगे। लेकिन नए नए तौर-तरीके और तकनीकी विधि अपनाने से छात्र उसको स्वीकारते हैं और सीखने में रुचि रखते हैं।
वर्तमान शिक्षण विधियां और पढ़ाने के तौर तरीके में नवीनता का समावेश करके शिक्षक विद्यार्थियों का रुझान शिक्षा के प्रति बढ़ा सकते हैं। किताबी ज्ञान के अलावा छात्रों के मानसिक शारीरिक व आध्यात्मिक विकास करना भी शिक्षक का ही दायित्व है। छात्रों को उसके लक्ष्य को हासिल करवाने के लिए परंपरागत तरीकों के अलावा ऐसे नए तरीके भी खोजे जा सकते हैं जो छात्र-छात्राओं के भविष्य के लिए आवश्यक है। उनके हुनर कौशल प्रतिभा को पहचानने में यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अगर वर्ग कक्ष में नए तकनीक अपनाएं तो इससे रचनात्मकता आएगी और शिक्षण पद्धति भी सुदृढ़ होगी। इन प्रकार के क्रियाकलाप व गतिविधियां होने से बच्चों की मानसिक व सामाजिक रुप से सक्रियता बढ़ती है। उनमें आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के गुण पैदा होते हैं। बच्चों को सृजनशील बनाने के लिए उन्हें कई तकनीक और नवाचार जैसे विचार उत्पन्न करने होंगे। विद्यालयों में ब्लैक बोर्ड पुस्तकालय चित्रकला कक्ष संगीत कक्ष विज्ञान कक्षा विभिन्न खेल से संबंधित सामग्री क्राफ्ट विज्ञान संबंधी सामग्री पेड़ पौधे समय-समय पर होने वाले पाठ्य सहगामी गतिविधियां और शैक्षिक भ्रमण भी एक आकर्षक नवाचार के दायरे में आता है।