S-1 समकालीन भारतीय समाज में शिक्षा
Unit-1 समकालीन भारतीय समाज में चुनौतियां और शिक्षा
विविधता, असमानता और वंचना, सत्ता, वर्चस्व और प्रतिरोध, सामाजिक न्याय की अवधारणा, शिक्षा के संवैधानिक प्रावधान
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Unit-1 समकालीन भारतीय समाज में चुनौतियां और शिक्षा, Challenge and Education in contemporary India. |
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उत्तर:- विविधता-
विविधता एक धनात्मक शब्द है जिसका अर्थ होता है विभिन्नता। अर्थात किसी खास जगह पर रह रहे प्राणियों के सभ्यता संस्कृति रहन-सहन तौर-तरीके व्यवहार चाल चलन में अंतर होने को विविधता कहते हैं। विश्व में भारत विविधता में प्रथम स्थान पर है। भारतीय समाज और संस्कृति एक रंग की साड़ी नहीं है अपितु बहुरंगी चुनरी हैं। भारत ही विश्व में ऐसा देश है जहां सर्वाधिक विभिन्नता देखने को मिलता है। लोगों का रहन सहन तौर तरीका भोजन बोली व्यवहार प्रकृति आकृति सभी विविधता के अंग है। अगर हम कई देश घूम कर आ जाए तो जितने विविधता मिलेगी उतनी विविधता अकेले भारत में है। एक परिवेश में रहने वाले विभिन्न प्रकार के छात्रों में विविधता पाई जाती है। अतः एक शिक्षक का दायित्व बनता है कि वह ऐसे शिक्षायी माहौल का निर्माण करें जिसमें विविधताओं का सम्मान हो किसी भी प्रकार का असमानता का व्यवहार ना हो तथा एक समावेशी वातावरण में बच्चों को विकसित होने का अवसर मिले। इस क्रम में शिक्षकों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। उन्हें सभी वर्गों का सम्मान करना चाहिए। विविधता निम्न प्रकार से हो सकती है:-
Q.1 विविधता, असमानता तथा वंचना की अवधारणात्मक समझ विकसित करें। शैक्षिक संदर्भ में चर्चा करें।
उत्तर:- विविधता-
विविधता एक धनात्मक शब्द है जिसका अर्थ होता है विभिन्नता। अर्थात किसी खास जगह पर रह रहे प्राणियों के सभ्यता संस्कृति रहन-सहन तौर-तरीके व्यवहार चाल चलन में अंतर होने को विविधता कहते हैं। विश्व में भारत विविधता में प्रथम स्थान पर है। भारतीय समाज और संस्कृति एक रंग की साड़ी नहीं है अपितु बहुरंगी चुनरी हैं। भारत ही विश्व में ऐसा देश है जहां सर्वाधिक विभिन्नता देखने को मिलता है। लोगों का रहन सहन तौर तरीका भोजन बोली व्यवहार प्रकृति आकृति सभी विविधता के अंग है। अगर हम कई देश घूम कर आ जाए तो जितने विविधता मिलेगी उतनी विविधता अकेले भारत में है। एक परिवेश में रहने वाले विभिन्न प्रकार के छात्रों में विविधता पाई जाती है। अतः एक शिक्षक का दायित्व बनता है कि वह ऐसे शिक्षायी माहौल का निर्माण करें जिसमें विविधताओं का सम्मान हो किसी भी प्रकार का असमानता का व्यवहार ना हो तथा एक समावेशी वातावरण में बच्चों को विकसित होने का अवसर मिले। इस क्रम में शिक्षकों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। उन्हें सभी वर्गों का सम्मान करना चाहिए। विविधता निम्न प्रकार से हो सकती है:-
- क्षेत्रीय विविधता
- धार्मिक विविधता
- भाषाई विविधता
- सांस्कृतिक विविधता
- जातिगत विविधता
- लिंगात्मक विविधता
- उम्र सापेक्ष विविधता
- परिवेश के आधार पर विविधता
- आकार बनावट के आधार पर विविधता
- रहन-सहन तौर तरीके के आधार पर विविधता इत्यादि:-
असमानता
असमानता अर्थात समान ना होना। अर्थात समानता शब्द का प्रतिलोम शब्द असमानता है। विविधता और असमानता में काफी अंतर है। विविधता एक धनात्मक शब्द है जबकि असमानता ऋणात्मक शब्द है। असमानता का अर्थ श्रेष्ठता या निम्नता की प्रकृति जागृत होने से होता है। पुराने समय में सुविधाविहीन एक बहुत बड़ी गरीब समुदाय को सम्मानित जीवन जीने की व्यवस्थाओं से दूर रखा गया। सुविधाओं से वंचित किए जाने का आधार जन्म पुल्लिंग निवास स्थान भाषा आस्था मान्यताएं धर्म धर्म व संप्रदाय आदि थे। किसी व्यक्ति विशेष को मौलिक सुविधाओं से वंचित किया जाता है तो असमानता जन्म लेती है। इस प्रकार असमानता सत्ता व वर्चस्ववादी ताकतों के प्रत्यक्ष या परोक्ष व्यवहार द्वारा विकास के साधनों के असमान वितरण से उत्पन्न हुई वह स्थिति है जिसमें एक ही समाज में भिन्न-भिन्न समुदाय विकास की भिन्न-भिन्न अवस्था में रहने को बाध्य होते हैं। यह समानता शिक्षण में बहुत बड़ी बाधा है शिक्षकों को असमानता के विपरीत समानता का बोध करते हुए सभी छात्रों को समान शिक्षा देना चाहिए अर्थात समावेशी शिक्षा व्यवस्था लागू करनी चाहिए।
वंचना:-
साधारण शब्दों में वंचना का अर्थ वंचित होना अर्थात दुराव से है। जब एक ही समाज या परिवार में किसी एक व्यक्ति या समाज को दूसरे की तुलना में कम सुविधा मिलता है तो उसे वंचना कहा जाता है और यहां वंचना की स्थिति उत्पन्न होती है। वाल मैन के अनुसार- "वंचना निम्न स्तरीय जीवन दशा या अलगाव को घोषित करता है जो कि कुछ व्यक्तियों को उनके समाज के सांस्कृतिक उपलब्धियों में भाग लेने से रोकता है"। शिक्षा के संदर्भ में जब कोई बालक समाज में रहते हुए अपने सामाजिक आर्थिक व शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति किसी रूढ़िवादिता या विरोधाभासी बल के द्वारा नहीं कर सके तो इस से ही वंचना समझा जाएगा। उदाहरण के स्वरूप भारतीय समाज आज भी गांवों में लड़कों को लड़की की अपेक्षा ज्यादा महत्व दिया जाता है उससे ज्यादा सुविधाएं दी जाती है इस प्रकार लड़कियों में वंचना का भाव उत्पन्न होता है।
वंचना:-
साधारण शब्दों में वंचना का अर्थ वंचित होना अर्थात दुराव से है। जब एक ही समाज या परिवार में किसी एक व्यक्ति या समाज को दूसरे की तुलना में कम सुविधा मिलता है तो उसे वंचना कहा जाता है और यहां वंचना की स्थिति उत्पन्न होती है। वाल मैन के अनुसार- "वंचना निम्न स्तरीय जीवन दशा या अलगाव को घोषित करता है जो कि कुछ व्यक्तियों को उनके समाज के सांस्कृतिक उपलब्धियों में भाग लेने से रोकता है"। शिक्षा के संदर्भ में जब कोई बालक समाज में रहते हुए अपने सामाजिक आर्थिक व शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति किसी रूढ़िवादिता या विरोधाभासी बल के द्वारा नहीं कर सके तो इस से ही वंचना समझा जाएगा। उदाहरण के स्वरूप भारतीय समाज आज भी गांवों में लड़कों को लड़की की अपेक्षा ज्यादा महत्व दिया जाता है उससे ज्यादा सुविधाएं दी जाती है इस प्रकार लड़कियों में वंचना का भाव उत्पन्न होता है।
वंचना के प्रकार
1 वास्तविक वंचना- जब किसी व्यक्ति या समुदाय के द्वारा किसी मूलभूत आवश्यकताओं के रहने के बावजूद उससे वंचित हो या मानसिक रूप से इतना अक्षम हो कि वह उसका उपयोग ना कर पाए तो इससे वास्तविक वंचना कहा जाता है।
2 सापेक्षिक वंचना- जब कोई व्यक्ति या समुदाय दूसरे व्यक्ति या समूह की अपेक्षा भौतिक संसाधनों सामाजिक प्रतिष्ठा या किसी अन्य कारण से अपने आप को वंचित महसूस करता हो उसे सापेक्षिक वंचना कहा जाता है
1.वास्तविक वंचना (Absolute Deprivation)
(क)- व्यक्तिगत वास्तविक वंचना- जब कोई व्यक्ति मूलभूत आवश्यकताओं के लिए संघर्ष कर रहा हो और इस संघर्ष के बावजूद भी उन से वंचित हो या शारीरिक या मानसिक रूप से इतना अक्षम हो कि सामान्य सुविधाओं के उपलब्ध रहने के बावजूद भी उपभोग ना कर पाए तो इसे व्यक्तिगत वास्तविक वंचना कहा जाता है।
(ख) सामूहिक वास्तविक वंचना- जब कोई समूह किसी खास कारणों से जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए संघर्ष कर रहा है और इस संघर्ष के बावजूद भी उन से वंचित हो या शारीरिक तथा मानसिक रूप से इतना अक्षम हो कि सामान्य सुविधाओं के रहने के कारण भी उसका उपयोग ना कर पाए तो इससे सामूहिक वास्तविक वंचना कहा जाता है
2. सापेक्षिक वंचना (Relative Deprivation)-
(क) व्यक्तिगत सापेक्षिक वचना:- जब किसी विशेष व्यक्ति को अन्य व्यक्ति की तुलना में कम सुविधाएं प्राप्त हो तो उसे व्यक्तिगत सापेक्षिक वंचना कहा जाता है।
(ख) समुदायिक सापेक्षिक वंचना:- जब जब किसी विशेष समुदाय को अन्य समुदाय की तुलना में कम सुविधाएं प्राप्त होती है तो इसे सामूहिक सापेक्षिक वंचना कहा जाता है।
समकालीन भारतीय समाज में शिक्षा
Q.2 सत्ता, वर्चस्व तथा प्रतिरोध की अवधारणा विकसित करें।
उत्तर:- सत्ता:-
जब शक्ति को कानूनी तौर पर अधिकार के साथ जोड़ दिया जाता है तो उसे सत्ता माना जाता है। सत्ता अथवा शासन किसी अधिकार के अंतर्गत ही होता है।
कुछ विद्वानों की परिभाषा :
पेटरसन- आदेश देने और उसके पालन की आज्ञा का अधिकार सत्ता कहा जाता है
डेनिश- सत्ता निर्णय लेने एवं आदेश लेने का अधिकार है
एलन- प्रायोजित कार्यों के क्रियान्वयन को संभव बनाने हेतु सौंपी गई शक्तियां एवं अधिकार सत्ता कहलाते हैं
सत्ता कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे लोकतंत्र गणराज्य वास्तविक राजतंत्र तानाशाही लोकतांत्रिक गणराज्य राजा अराजकता धर्म तंत्र इत्यादि
वर्चस्व-
जब किसी संसाधनों पर किसी व्यक्ति समूह संस्था आदि का एकाधिकार हो जाता है तो इसे वर्चस्व कहा जाता है। व्यक्ति के अंदर भिन्नता के रूप में कोई ना कोई शक्ति निहित होती है। यही शक्ति जब अंतर्मुखी हृदय से बाहरी परिवेश में प्रकट होकर संसाधन आदि का प्रयोग करने में सुनिश्चित होता है तो इसे ही वर्चस्व कहा जाने लगता है। वर्चस्व द्वारा शासक वर्ग उन वर्गों की सहमति हासिल करता है जिस पर उसे प्रभुत्व कायम करना रहता है।
प्रतिरोध-
आसान शब्दों में प्रतिरोध का अर्थ विरोध है। प्रतिरोध व्यक्तिगत सामाजिक धार्मिक जातिगत या किसी ताकत वर्ग से हो सकता है। प्रतिरोध असंगत और न्यायिक अनैतिक एवं असंवैधानिक कार्यों के विरुद्ध ही होगा। लेकिन यह अनिवार्य नहीं है कि हर जगह ऐसा ही हो अर्थात प्रतिरोध न्याय के विरुद्ध भी हो सकता है। लेकिन ऐसा प्रतिरोध सकारात्मक कम नकारात्मक अधिक होता है, क्योंकि लोकतंत्र या किसी व्यवस्था में उस व्यवस्था के साथ एवं विचारधारा के साथ 100% सहमति या असहमति संभव नहीं है। उदाहरण के स्वरूप जब संसद में इसे बिल को लाया जाता है तो 100% सदस्य उस पर सहमति नहीं जताते हैं उसी प्रकार जब किसी समाज में कोई वर्ग विशेष किसी पर अत्याचार करते हैं तो उन वर्ग विशेष में प्रतिरोध की भावना जन्म लेती है अर्थात जब सुविधाओं से वंचित समूह के अंदर प्रतिरोध जन्म लेता है तो हम कहते हैं कि उसमें प्रतिरोध की भावना उत्पन्न हो गई। प्रतिरोध के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:-
- संसाधनों का असमान वितरण
- सामाजिक विषमता
- सामान्य लोगों का शोषण
- आर्थिक आधार पर असमानता
- संसाधनों पर एकाधिकार
- निम्न जीवन स्तर इत्यादि
Q.3 सामाजिक न्याय की अवधारणा विकसित करें।
अथवासामाजिक न्याय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:- जब किसी सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर भेदभाव ना करके सबको समान अधिकार प्राप्त हो तो इसे सामाजिक न्याय कहा जाता है। अर्थात सामाजिक न्याय सभी मनुष्यों को समान मानने के आग्रह पर आधारित है। सभी व्यक्ति के पास इतने न्यूनतम संसाधन होने चाहिए कि वे उत्तम जीवन को जी सके। भारतीय संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 14 से लेकर 18 तक समानता का अधिकार का वर्णन किया गया है। इसमें किसी भी जाति धर्म समुदाय लिंग जन्म स्थान इत्यादि के आधार पर भेदभाव को निषेध किया जाता है। अर्थात सबको समान अधिकार प्राप्त है। यह सभी अधिकार और कानून सामाजिक न्याय कहलाते हैं। सामाजिक न्याय के माध्यम से सभी को बराबर अधिकार और मूलभूत सुविधाएं प्राप्त होती है। सामाजिक न्याय संसाधनों पर सब के हक को पोषित करता है तथा उन संसाधनों का सभी के लिए सदुपयोग पर सब के विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करता है।
सामाजिक न्याय राज्य द्वारा बनाई जाने वाली नीतियों के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य करता है। सामाजिक न्याय का संबंध सिर्फ किसी विधिक मामले में न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के आधार पर प्राप्त होने मात्र से नहीं है यह उससे कहीं आगे एक व्यक्ति या समुदाय चाहे वह हासिये पर ही क्यों ना जी रहा हो उसके मूलभूत अधिकारों के संरक्षण उसके मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति तथा उसे सम्मान पूर्वक जीवन जीने की दशाओं को विकसित करने से सामाजिक न्याय का संबंध है। सामाजिक न्याय संसाधनों पर सब के हक को पोषित करता है तथा उन संसाधनों का भी सभी वर्गों के लिए उपयोग कर सके विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के पक्षधर हैं।
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Sikhsha kay parbdhan
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